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________________ निश्शेप २५ रहा था । और निगाह उसकी कठिन थी । बोली, "पड चुका असर जो पडना था। वच्चे अब बडे हो गए हैं। दस जनो के कहने की फिकर करते हो ! तुमने क्या-क्या कहा है, वह याद नही करते ?" "छोडो उन बातो को।" कहते हुए रामशरण जरा उधर सरके । शारदा परे हट गई । बोली, "आगे न बढना " "क्या मतलब ?" "मतलव अपने से पूछो।" "और मुरारी को वाह पकडकर पास विठा लिया था !...'' "हा, विठा लिया था । दस बार विठाऊगी। पर खवरदार तुम . " रामशरण का उस स्त्री से विवाह हुया था। सात भावरें पड़ी थी। फिर यह उसकी हिम्मत | तेजी से वाह वढाकर उसने शारदा की कलाई को पकड लिया। शारदा उसके लिए एक साथ अत्यन्त कमनीय और भर्त्सनीय हो आई थी। हाथ का छूना था कि एक झटके से शारदा ने अपनी बाह छुडा ली, "खवरदार | जो हाथ लगाया।" रामशरण ने दात पीसकर कहा, "मोह | पारसा बनती है। बदजात, छिनाल कही की।" और कहते हुए फिर उन्होने हाथ फेंका। शारदा तेजी-से पलग से हट गई । बोली, "मै छिनाल सही। पर तुम मुझे नही छू सकते।" ____ "तुझे ' तुझ हरजाईन को । छुए तुझे तो पाप लगे। तैने अपने को समझा क्या है ?" शारदा हस आई । कटीली वह हसी थी । बोली, "यही कहती हूं कि पाप लगेगा, छूना मत।" रामशरण पलग के सिरहाने के करीब थे। शारदा पायते से जरा हट कर खडी हुई थी। उसकी आखो मे चुनौती थी और रामशरण की निगाह में चाहत और नफरत की झुलस थी। "तू अपने को सूबसूरत समझती है। इसी गुमान ने तुझे वहका
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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