SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्षेप १६१ सिर्फ दक्षिणा हो सकती है । वाम मे होती है वामाग्नी कहो, कैसे रहे ? अहा हा-हा। इसीलिए देख लो, वाई तरफ ही दरवाजा है । द्वार से होता है द्वाराचार | चलो भई, द्वाराचार देखें। ___ वाह भई । मानना होगा लोगो को जभी तो विश्वविद्यालय कहते है ! क्या खूब बनाई है इमारत | कितना पैसा लगा होगा? वडा पैसा लगा होगा | पैसा साला बहुत लगता है । जाने यह पैसा कहा रहता है ? हमको तो दीखती नही जगह ? पर है साले मे करामात । इधर दो, उधर जलेबी का दोना तुम्हारे हाथ मे | और वह जलेबी वाला बनाता ही है, खाता नहीं है, न घर ले जाता है । पैसा दो और जलेवी ले लो । या और चाहे कुछ तो वह ले लो। पर हम परमात्मा को पैसा क्या करेगा ? जलेबीवाला अाज हमको जलेबी नही दिया । बोलता, पैसा लायो ! हम हस दिया । हसने का बात है कि नही ? जलेवी वह खाता नही है और पैसा मागता है | पर पहचानता नही हम परमात्मा है । क्या पैसा, क्या जलेबी । हम सबको लात मार सकता है । विश्वविद्यालय । यहा लोग विद्या पढते है । पढ कर विद्या को पढाता है । पढा कर क्या करता है ? पैसा पाता है, पैसा हाथ से देकर जलेवी पाता है । जलेबी खा के फिर पढाने आ जाता है । पढा के पैसा लेके फिर खाता-पीता-पहनता है। एई ढो विछा का चक्कर ।। अलवत चक्कर । हम खायेगा, काहे कि खाना स्वाद लगता है ! पर उसके वास्ते करेगा काहे को । खाने के वास्ते पढायेगा, पढा के पैसा पा के सायेगा । हम मुफ्त पढायेगा | मुफ्त खायेगा । जिन्दगी हमारी है और आजाद है और मुफत । एकदम मुफत ! ___ो-हो-हो । यह बारिश फिर होना मागता है । बादल काला हो गया है। ऊपर घूमता है। हम नहीं भीगा, पर वाल काला है और माला वह भीग जाता है। (और उसने सिर के वालो को दवाकर हाथ से सूता।) इस बार यह नहीं होएगा। हम एक दम नहीं भीगेगा, वाल भी नहीं भीगेगा। कुछ भी नहीं भीगेगा । और महाशय ने कान्वोकेशन हाल
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy