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________________ चक्कर- सदाचार का 1 "लडका है ? कितने वर्ष का है ?" " दो वर्ष की बच्ची है ।" " तो तुम देश के काम मे हो ?" "जी ।" १५३ "अच्छा है, अच्छा है ।" बात खतम सी लगती थी । मैंने हठात् कहा, "सदाचार के प्रचार 1 के लिए बताइए क्या किया जाना चाहिए ?" -- -की समितिया वन तो रही है । काम भी तेजी से "सदाचार ? हो रहा है । तुम्हे उसमे लग जाना चाहिए ।" "लेकिन, आप — " "हा, हा, कहो । मैं क्या ?" "आपका उसमे योग चाहिए ।" "योग है क्यो नही । अवश्य है, अच्छे काम मे भगवान का योग होता है । फिर सवाल क्या "हम श्रापको अपने साथ समझ सकते है ? समिति मे ले सकते हैं ?" "साथ में क्यो नही है । लेकिन समिति — उसको जाने दो ।" " समिति तो कार्य को स्वरूप देने के "हा, हा, वह तो है ।" शर्मा जी ने जैसे देखना श्रव प्रारम्भ कर रहे हो । लिए है ।" कहा- और मुझे ऐसे देखा ܙܙܕ कुछ क्षण उस निगाह के नीचे में अस्तप्राय सा बैठा रहा । फिर हठात् कहा, " तो आपकी अनुमति हम मान सकते है ?" उन्होने उत्तर नही दिया । चेहरे पर कुछ काठिन्य फलक श्राया । लेकिन हठपूर्वक मानो हसते हुए बोले, "तुम्हे उसकी बहुत चिन्ता है ? तुम तो जवान हो, बड़े लोग चिन्ता कर ही रहे है । देश की बातें उन पर छोड दो ।" "लेकिन, सर, यह देश की बात नही है, जनता की बात है । जनजन की बात है ।"
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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