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________________ जीना-मरना १६ या। घर पर गोने की तैयारी ही कर हे घे वि दरवाजे पर प्राद हुई। युरा मालूम हुमा गि यह मिनी के लिए गया ममय है । पर दरवाजे पर पाने के गाय लीलाधर मे शाथ मे तार दिया गया। उन्होने देगकार कहा कि यह नाम हमारा नहीं है, किमी दूसरे का नार है। "नीलागर जी का यही पर नहीं है।" "सचिन तार पर मेग नाम नही है।" "जी, अपनाती नार है और धाप यहा देने को कहा है।" तार दिया और बोला । लिना था-मुपदवी मर गई। भारीर उठा ले जाए। ग्याना बज गया। रात अधेगे। नार हाथ में है। दुनिया गर गई: गेरको उठा मगा । नीलार गार कोहार में लिये रह गये । गत पीपीग में बिजली मी पगम्य रोगनिया जाना मारपालि जी. पता दिल नगाना गानाTोगा । यो पारनाई। मोनार प्रदर पारे । चपापना पानी गोदिता। पली में विगट पर AI, "या होगा अब ?" "मय मोना " मन शो मेकानिमा-गरमले हो परपंगामने ले में माता माँ -गची मागटराग पिग" "Iform HiT Hध में नामी गोनी, गोई गगा, रोई ने शनि ।" "की मांग पर मरना । मागे । तर fraना माना गय नही करना 'यो नमोनोपमा मगे" " Frimar आगे
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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