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________________ जीना मरना पति ने कहा, "ग्राज मंगलवार है । चोबा रोज हो गया बुगिया को प्रन्पताल गये । हम श्रव तक जा नहीं सके है | जाने क्या हाल होगा ? श्राज जरूर चलना है, चार बजे ।" पत्नी बोली, "आज ? आज तो माटे तीन बजे शान्तिलाल जो के यहां सगाई है। सुद आये थे, बहुत बहुत कह गये हैं । नही जायेंगे तो बुरा मानेंगे। और हरदम पढोग ना सवाल है ।" "लेकिन 1" "परयो तो रघो गया ही था । कहता था पहले मे तबियत ममली बताती थी । कल चले जायेंगे ।" 'विचारी तीन दिन से राह देखती होगी | कौन बैठा है । और मैं सगभता हूँ, यह उसका अन्त समय है ।" "अकल चलेंगे । या तुम ऐना करो कि सगाई निवटा र पाच बजे अपने ले जाओ। मुझे तो छुट्टी मिलेगी नहीं ।" "पाच बजे से तो काका के जन्मदिन का उत्सव है। टाल भी जाना, सेनि उन्होने छाप दिया है हि श्राता मुझे करनी है। ऐसा करो हि घर पर पर्ने, जन दे कर नाटे चार नया जाए ।" हम तीन पर ही "नहीं, नहीं । शानिवान जी तो ।" की परिवार के लिए उपाय चुत लिए जाना नहीं की, यह जाना की थी। ही भी शेयर दिन यही कया। उनके मुनिया अमान में ध्यान पाया । जोर विर है - पानी में रहने दो। मन्ना ,
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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