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________________ • रुकिया बुढ़िया उसी समय उस झुड में की सरसों बेटी ने कहा, "नानी नहीं..." और मानो गाकर कहा, "नानो बुढ़िया, फूल दे।" अनायास नानी उस सरस्वती कुमारी के कण्ठ में से नानो बनकर निकलीं। और तुरन्त वहाँ खड़े बालकों ने प्रत्यक्ष देख लिया कि नानी का यह नवाविष्कृत रूप, नानो, उनके मन के अधिक भीतर है । नानोअर्थात् हमारी अपनी नानी । नानी में अपना निजत्व भरा जाय, तो किस तरह उसे नानो बन उठना होगा-यह हमारी समझ में कुछ भी नहीं आ सका है; पर सच, बालकों को लग रहा है कि नानो बनाकर नानी को उन्होंने अपने जी में जैसे और गहरा उतार लिया है। बालक-बुद्धि ही तो है ! फूल अब बिलकुल बिसर गये, और हिलमिलकर वे सब दोहराने लगे, "नानो बुढ़िया, फूल दे। नानो बढ़िया फूल दे।" और उस बुढ़िया के चारों ओर वे बालक उछल-कूद भी मचाने लगे। बुढ़िया ने कहा, "फूल रहे नहीं, बेटा।" यह बुढ़िया भी कैसी है ! फूल रहे नहीं, तो इसमें कौन बहुत बड़े अन्याय की बात है ? पर यह उनकी बुढ़िया क्यों अच्छी तरह नहीं सुन पाती है कि वह नानी नहीं, नानी से बढ़कर आज से वह नानो है। उन्होंने कहा, "नानो बुड़िया फूल दे।" बुढ़िया ने कहा, "फूल निबट गये, बेटा।" सरसों ने कहा, "बुढ़िया तू नानी है ?" "हाँ बेटा..." बाला ने जोर से कहा, "नहीं, तू नानी नहीं है।" बालिका ने बताया, “नानी नहीं है, बुढ़िया, तू नानो है । नानो बुढ़िया है।" बुढ़िया के जी में हुआ, वह इस प्यारी नन्नी को उठाकर तनिक प्यार कर ले । कैसी फूल-सी है ! पर, सोच आया, वह बुढ़िया है, और उसके कपड़े चीथड़े हैं, और मैले हैं, और उसकी देह में हाड़ बड़े निकल रहे हैं । बच्ची डरेगी। उसने कहा, "अच्छा बेटा !"
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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