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________________ रुकिया बुढ़िया बुढ़िया का नाम रुकिया है । इस मुहल्ले में वह तीन बरस से रह रही है | मुहल्ले वालों को इसका पता नहीं है । शहर है, अपने-अपने धन्धों से किसी को बहुत समय नहीं बचता है । तिस पर, वह बुढ़िया है । हाँ, जब आते-आते ही उसने साँझ के मेल में, जमनाजी से लौटती बेला इस बालिका या उस बालक के हाथ में आप ही आप फूल देने आरम्भ किये, तो चट मुहल्ले के सब बालक उसे जान गये, तो उनके पास इस बुढ़िया के लिए बना-बनाया नाम था ही, नानी । वह इनकी नानी बुढ़िया हो गई । होते-होते नानी से भी बालकों को सन्तोष होना कम होने लगा । सम्बोधन में मानो जितना अपने जी का अपनापा वे बालक भर देना चाहते हैं, यह नानी शब्द उतना अपने में धारण नहीं रख सकता है । यह शब्द जैसे कहीं श्रोछा रह जाता है । एक साँझ बुढ़िया जमना से फूलों की डलिया सिर पर रीती लिये लौटती थी। तभी राह में बालकों के इस ऊधमी दल ने घेर कर उसे रोक लिया । वे सब के सब जरूर जरूर एक- एक फूल अपने लिए लेंगे । देख लेना, बिना लिये टल जायँ तो | चिल्लाकर बोले, “नानी बुढ़िया, फूल दे ।" ८८
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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