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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग] खोटा था, छज्जे पर खड़ा था। राजीव को चढ़ते देख, वहीं से बोला, 'भाभी, यो भाभी, चाचा पा रहे हैं !" और, पर्याप्त-काया भाभी, यह सुनते ही, सब काम छोड़ फुर्ती से भाग छूटी। भागकर भीतर के कमरे में भाग गई । जल्दी में किन्तु उसके पट ठीक तरह से उनसे बन्द नहीं हुए और वह हाथ के ज़ोर से उन्हें बन्द किए हुए उनके पीछे डटी खड़ी हो गई ! राजीव ऊपर आया तब उसी खोटे छोटे ने इशारे से बताया कि भाभी हाँ, उस पीछे वाले कमरे में हैं। उधर को बढ़ता ही था कि जोर की डपट की आवाज़ आई, "क्या है ?" आवाज़ कम काफ़ी न थी, उस पर स्वयं भाई-साहब भी सामने आए । अजब डाँट उनकी मुद्रा में थी। बोले, "क्या है ?" राजीव ने कोठरी की ओर बढ़ते हुए ही कहा कि कुछ नहीं। - "कुछ है भी ?"-और भी ज़ोर से भाई-साहब ने कहा। ____ "रंग का लोटा है।" राजीव ने धीमे से कहा। कहकर भाई-साहब के देखते-देखते वह कोठरी की ओर बढ़ा और लोटे को बाएँ हाथ में लेकर दाएँ हाथ से उसने किवाड़ों में जा धक्का दिया ! भाभी ने पूरा जोर लगाकर किवाड़ बन्द रखे । भाई-साहब ने चिल्लाकर कहा, "राजीव !” । राजीव ने कहा, "रंग तो हम डालेंगे।" और किवाड़ में दूसरा धक्का दिया। कमरे के पीछे से छज्जे-छज्जे एक दूसरे मकान में जाया जा सकता है। वहाँ एक सद्-गृहस्थ रहते हैं। आर्यसमाज के वह एक उत्साही सदस्य हैं और रेलवे के हिसाब-दफ्तर में काम करते हैं। चित्रकला के प्रशंसक और पारखी हैं। राजीव के एकाध चित्रों में भी उन्होंने ड्राइंग का ठीक होना स्वीकार किया है। उनकी दृष्टि में राजीव, हाँ, होनहार हो भी सकता है । उन सज्जन की अवस्था तीस-बत्तीस होगी। पर बुजुर्गी
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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