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________________ १८२ . जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवां भाग] में अभी आप नहीं जा सकते हैं। और रिहाई होगी तो एक वायदे पर। वह यह कि आप प्रायन्दा यहीं ठहरियेगा।" वागीश ने इस वक्त के लिए तो लाचारी जतलाई । हाँ आयन्दा वह यहीं पायगा । अभी तो एक मित्र के यहाँ पहुँचना है। इस पर मैनेजर बहुत निराश थे । तो भी उन्होंने तत्परता से मोटर लाने को कहा । जहाँ पहुँचना हो, मोटर उन्हें पहुंचा देगी। मैनेजर वागीश के साथ पोर्च तक आए । ड्राइवर से कहा, "बाबू जहाँ कहें ले जाओ।" घड़ी में समय देखकर वागीश से पूछा, "आपको वहाँ से फिर कहीं जाने के लिए तो मोटर दरकार नहीं होगी ? दो बजे हैं । पौने तीन बजे एक एपाइण्टमेण्ट है।" ___ वागीश ने सधन्यवाद कहा, "जी नहीं, पहुँचा कर गाड़ी सीधी प्रा सकती है।" (ड्राइवर से ) "अच्छा, तो बाबू को पहुंचा कर यहाँ सीधे गाड़ी ले आना । अच्छा, वागीशजी, देखिए मेहरबानी रखिएगा। और खादिम को याद फर्माइएगा।" आज ही शाम की गाड़ी से वागीश को जाना था। उसने मित्र से पूछा कि उन्हें काम-काज को किसी नौकरानी की जरूरत तो नहीं है न ? हां, मित्र को जरूरत न थी, पर स्त्री को और कोई ठिकाना न हो तो कुछ महीने उसे निबाहने को तैयार थे। इतने में कहीं दूसरी जगह उसके लिए देख दी जायगी। वागीश ने स्त्री से पूछा । मालूम हुआ कि वागीश उसे खुद वहीं स्टेशन के पास छोड़ पाये, इसके सिवा वह और कुछ नहीं माँगती । वागीश ने समझाया कि यहाँ आराम से रहेगी और दस रुपये के हिसाब से दो महीने में बीस रुपया जमा-पूजी हो जायगी। पर नहीं, वह साथ स्टेशन जायगी।
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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