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________________ चालीस रुपये १७७ स्त्री को चुप देख, कुछ देर बाद कहा, "खैर, यह लो?" कहकर ग्यारह पैसे मजदूरी के उसकी हथेली पर रख दिये। पूछा, "और चरखा ?" "काता था।" "उसकी मजदूरी कितनी हुई, बतलामो? मुझे कल चला जाना है।" स्त्री चुप रही तो धमकाकर कहा, "बतलाती क्यों नहीं हो ? गरीब से मैं कोई मुफ्त मेहनत नहीं ले सकता।" काफ़ी धमकाया गया तो स्त्री ने कहा, "जो आप जानें।" वागीश ने चार पाने निकालकर दिये। कहा, "यह तो वाजिब से ज्यादा ही है।" स्त्री ने इस पर एक इकन्नी वापिस लौटाते हुए कहा, "तीन आने बहुत हैं।" वागीश को बहुत बुरा लगा। बोला, "गरीब की मेहनत खाने वाला इस घर में कोई नहीं है। अपने पास रखो। अच्छा, दो दिन तुमने यहाँ काम किया है, उसका क्या हुआ ?" स्त्री चुप रही। वागीश ने ज़ोर से कहा, "बताती क्यों नहीं हो ? क्या हुआ ? जैसे बड़ी रईसजादी हो।" स्त्री धीमे से बोली, "मुझे यहाँ खाना-कपड़ा..." ___वागीश ने डपटकर कहा, "चुप रहो। खाना यहाँ मोल नहीं बिकता । बस, चुप । ठीक बोलो, दो दिन का तुम्हारा क्या हुआ ?" ' वह कुछ नहीं बोली। कुछ देर जैसे वह भी अनिश्चय में रहा; फिर कहा, "अच्छा, वह चार आने मुझे देना तो।" । - स्त्री ने पैसे वापिस कर दिये। वागीश ने एक रुपया निकालकर उसके हाथों में देते हुए कहा, "बारह आने ठीक हैं नं ? इतनी मजदूरी और किसी को नहीं मिलती। गरीब जानकर तुम्हें दे रहे हैं।" इसके बाद वागीश चुप रहा और स्त्री भी चुप रही। थोड़ी देर बाद बोला, "तुम्हारा नाम क्या है ?"
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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