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________________ प्रेम की बात 1 बात का प्रेम पर आना था कि प्रसाद बोले, "जी नहीं, मैं माफी चाहता हूँ । प्रेम में नियम नहीं होता । नियम आदमी बनाता है । प्रेम पर उसका बस नहीं । वह ऐसी चीज है, जैसे भूकम्प । वह श्राप में से नहीं आता है, हम में से नहीं आता है, श्रगम, अगोचर में से आता है । या जाने कम्बख्त कहाँ से आता है । उस पर बात नहीं की जा सकती ।" प्रसाद पचास पर पहुँचते होंगे । पर कभी उन्हें भी उम्र भूल जाती है, हमें भी भूल जाती है। उनकी जिन्दगी दिलचस्प रही है और हम जानते हैं कि जब वह अपनी बात सुनाने लगते हैं तो जरूरी नहीं है कि कल्पना से काम न लें या नमक मिर्च से परहेज करें। हमने समझ लिया कि कोई कहानी श्रा रही है। इससे बढ़ावा दिया और फिर सुदने की राह में हो बैठे । प्रसाद ने अन्त में कहा, "बहस छोड़िए । लीजिए अपनी बीती सुनाता हूँ। ऐसी बहुत दिनों की बात नहीं है, यही वर्ष १५ हुए होंगे । इसी शहर में था, और आपने श्रीमती मिश्र का नाम सुना होगा । जी, वही । जी हाँ, मोटर एक्सीडेन्ट में जिनकी मृत्यु हुई । कहाँ वह, कहाँ मैं ? लेकिन छुटपन में मैं उन्हें जाना करता था । इतना छुटपन भी नहीं, श्रीमती मिश्र वह तब भी १४६ PETRAYER
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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