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________________ गुरु कात्यायन तत्त्ववागीश महापण्डित कात्यायन उस दिन देर रात तक सो नहीं सके । परमहंस सन्त मधुसूदन को उन्होंने तत्त्वार्थ में परास्त किया था । किन्तु सन्ध्यान्तर अकेले हुए तब मधुसूदन की बातें उन्हें घेरने लगीं। तब वह यत्न करके भी पूरी तरह उन से छूट नहीं सके । रात में उन्होंने देखा कि शिव-पार्वती उनके घर में आ गये हैं । घर की दीवारें लुप्त हो गयीं हैं और कैलाश के स्फटिक से सब कहीं प्रकाश ही प्रकाश हो गया है । कात्यायन मारे डर के एक ओर हो रहे । भगवान् शिव की भृकुटि वक्र थी । वह पार्वती पर अप्रसन्न थे । पार्वती कह रही थीं, “तुम्हारी सृष्टि इतनी बेतुकी क्यों है जी ? मधुसूदन के समक्ष कात्यायन गर्व करता है । यह अन्याय तुम किस प्रकार सहते हो ?" शिव ने कहा, "जहाँ अधिकार नहीं है वहाँ की चर्चा करने की आदत, स्त्री हो, क्या इसलिये नहीं छोड़ सकोगी ? चुप रहो ।” पार्वती ने भी आवेश में कहा, "मधुसूदन को मैं जानती हूँ । ७७
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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