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________________ ऊर्वबाहु इन्द्र अपने नन्दन-कानन में अप्सराओं समेत आनन्द-मग्न थे कि सहसा उनका आसन दोलायमान हुआ । इस पर उन्होंने चारों ओर विस्मय से देखा । अनन्तर सशंक भाव से कहा, “प्रहरी, देखो यह किस मर्त्य का उत्पात है ?" प्रहरी स्वर्ग से सिधार कर धरती पर आया और लौटकर सूचना दी, "महाराज, तपस्वी ऊर्ध्वबाहु प्रचण्ड तप कर रहे हैं। दिशाएँ उस पर स्तब्ध हो उठी हैं । उसी के प्रताप से स्वर्ग की केलि-क्रीड़ा में विघ्न उपस्थित हुआ है।" इन्द्र ने कहा, "ऊर्ध्वबाहु ! ऋषि भद्रबाहु का वह उद्दण्ड शिष्य ? उसकी यह स्पर्द्धा !" प्रहरी ने कहा, "हाँ महाराज, वह अमोघ तपस्वी ऋषि भद्रबाहु के ही आश्रम के स्नातक हैं।" ___इन्द्र ने तब अपने विश्वस्त अनुचर सौधर्म को निरीक्षण के लिए भेजा । सौधर्म ने आकर जो बताया, उससे इन्द्र भयभीत हो आये । वह अस्थिर और म्लान दिखाई देने लगे । सौधर्म ने ऊर्ध्वबाहु की अखण्ड तपश्चर्या का रोमहर्ष वर्णन किया। पूरा संवत्सर
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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