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________________ उपलब्धि १३६ चलूँ । यह सोचकर माँस का टुकड़ा चुपके से उनकी पीठ की तरफ डालकर वह जिनराजदास के सामने धूछ हिलाता हुआ खड़ा हो गया । जिनराजदास ने उधर ध्यान न दिया। इसपर अगले दोनों पैर जिनराजदास के कन्धे पर रखकर उनके मुंह के पास ले जाकर मानों उन्हें चाटना चाहने लगा। जिनराजदास ने इस चेष्टा पर कुत्ते को जोर से धक्का देकर दूर फेंक दिया। कुत्ता कुछ देर तो वहीं पड़ा रहा और जाने क्या सोचता रहा । फिर उठकर वह उनके पैरों के पास आकर चुपचुपाता बैठ गया। बैठा-बैठा फिर अपनी जीभ से उनके तलुवे चाटने लगा। बार-बार इस तरह अपना ध्यान भंग होना जिनराजदास को अच्छा नहीं लग रहा था। वह मानते थे कि इसी समय को मैं अपना अन्त समय बना लूँगा और समाधि-मरण प्राप्त करूँगा। पर यह अभागा कुत्ता आत्मध्यान से उन्हें बार-बार च्युत कर देता था। इस बार किंचित् रोष में उन्होंने जोर से पैर की लात मार कर कुत्ते को अपने से परे कर दिया। कुत्ता सहसा चीखा, लेकिन शायद वह अपने साथी को बहुत प्यार करने लगा था। इससे कुछ देर आस-पास डोलकर वह वहीं पैरों के पास क्षमा-प्रार्थी बना हुआ था लेटा। कुछ देर तो दोनों पैरों में मुंह देकर आँख-मींचे उन्हीं की तरह ध्यानस्थ पड़ा रहा। अनन्तर पीछे से माँस का टुकड़ा खींचकर स्वयं ही उसे चबाने लगा। ___ कुत्ते के मुंह की चपचप से जिनराजदास की तल्लीनता इस बार टूटी तो उनको बहुत ही बुरा मालूम हुआ। तिसपर देखते
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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