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________________ जैनेन्द्र की कहानियां [तृतीय भाग] मंगलदास के घर में उसकी स्त्री थी और माता थी। रुपये की बात उसने अपनी माँ को नहीं वतलाई थी। बस स्त्री को बतलाई थी। जब नगर वालों ने देखा कि मंगलदास वैरागी से किसी दूसरे को नहीं मिलने देता है तो उसके दुश्मन हो गए। उनकी कोशिश रहने लगी कि इसके घर में फूट पड़ जाय। ऐसी सस्ती आमदनी की वजह से मंगलदास पहले से कन्जूस हो गया था। वह माता की बेकदरी करता था। काम तो उसे खूब करना होता था, पर खाने को रूखा-सूखा ही मिलता था । नगरवालों ने मंगलदास की माँ को कहा, "तुम्हारे बेटे को इस वक्त खूब मुफ्त की दौलत मिल रही है । तुम्हारे तो वारे-न्यारे हैं।" । ___ माँ ने समझा-लोग हमारी गरीबी की हँसी उड़ाते हैं। उसने कहा, "भैया, गरीबी के दिन जैसे-तैसे हम लोग काटते हैं। हमारे पास धन कहाँ है ? गरीब की हँसी नहीं करनी चाहिए।" तब नगरवालों ने कहा, "मंगलदास तुम्हारे साथ धोखा करता है । उसने जरूर धन कहीं छिपा रखा है।" होते-होते माँ को भी इस बात का विश्वास आ गया और वह अपने बेटे की बहू से झगड़ा करने लगी। नतीजा यह हुआ कि रोज कलह होता और घर में अशान्ति बनी रहती। मंगलदास को अब इस नगर में रहने का विलकुल चाव नहीं रह गया था। गाँव के लोग तो दुश्मन थे ही और घर में भी अनबन रहा करती थी। सो उसने वैरागी को बहुत कहा-सुना कि इस नगर को छोड़कर चलना चाहिए। वैरागी ने कुछ नहीं कहा । वह नित्य प्रार्थना में लीन रहता था । और कोदिन की आत्मा के लिए शान्ति की दुआ किया करता था।
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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