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________________ लाल सरोवर १०३ था कि वैरागी को अपने चलने से अशफ़ियाँ पैदा होने की बात मालूम हो। क्योंकि ऐसा होने पर अशर्फियाँ किसी के हाथ नहीं लगेंगी और वैरागी अपना घर भर लेगा। मूरख अनजान है, तभी तो यह आदमी इतना सूखा, दीन और वैरागी बनकर रहता है ! अशी की बात नगर-भर में फैल गई थी। मंगलदास को बड़ी कसक रहने लगी। इसके बाद से वह वैरागी को कन्धे पर ही ले जाया करता था। उसके मन में तरह-तरह के सोच होते। कई हजार अशर्फियाँ उसके पास हो गई थी, लेकिन उसका बढ़ना अब रुक गया था। इससे उसके मन को बहुत क्लेश था । उसने सोचा, "वैरागी को यहाँ से कहीं और ले चलूँ । जहाँ अशी की बात किसी को मालूम न हो। लेकिन कैसे ले चलू ? कोदिन को छोड़कर क्या वैरागी कहीं जाने को राजी होगा?" ___ मंगलदास ने नगरवासियों की एक रोज वैरागी से बहुत बुराई की कहा, “यह नगर सन्तों के योग्य बिल्कुल नहीं है, महाराज! अब आप किसी दूसरे देश चलिये । आपका यह सेवक साथ है।" वैरागी सुनकर हँसता रहा । वह बोलता नहीं था। मँगलदास खुलकर कुछ कह नहीं सकता था। उसे यह डर रहता था कि कहीं अपनी मर्जी से पैदल चलने की हठ वैरागी न कर बैठे। ऐसे भेद खुल जाता । इससे वह कभी बात बढ़ाता नहीं था। आखिर सोचते-सोचते मँगलदास को एक बात सूझी। सोचा कि कोदिन अपना कोढ़ लेकर क्यों जिये जा रही है ? शिवालय से उसकी झोंपड़ी तक लोगों की आँखें बराबर लगी रहती हैं । वैरागी को यहाँ से वहाँ तक रोज़-रोज़ कन्धे पर ले जाने से मेरा बदन भी
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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