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________________ लाल सरोवर && 1 था। रात भर उसके मन में दुविधा रही थी। ये दिन ऐसे ही थे । बाजार में तेज़ी - मन्दी हो रही थी। सट्टे के काम में छन में वारेन्यारे हो जाते थे । आँखों देखते कुछ ने प्रचुर धन बटोर लिया था और कुछ कुबेर जैसे धनी पामाल हो गये थे । पर मंगलदास को भरोसा नहीं जमता था और खतरा नहीं उठाना चाहता था । इन मौनी वैरागी पर उसको श्रद्धा थी। सोचता था कि सवेरे ही उनके दर्शन करके जो दाँव लगायगा उसका फल जरूर अच्छा ही आयगा । सवेरे-ही-सवेरे चलकर मंगलदास शिवालय पर आया तो रास्ते में क्या देखता है कि एक-एक क़दम पर एक-एक अशर्फी पड़ी है ! उसे बड़ा अचम्भा और खुशी हुई। अशर्फ़ी उठाता गया और शिवालय पर आया । पर वहाँ वैरागी नहीं थे। लौटकर वह उसी रास्ते अशर्फियों के पीछे-पीछे चला । अर्फी उठाकर रखता चला जाता था । इतने में क्या देखता है कि एक ग्वाले का लड़का रास्ता काटकर चला जा रहा है और उसने दो अशर्फियाँ उठा ली हैं । मंगलदास ने बढ़कर उस बालक को पकड़ लिया । "यह तूने क्यों उठाई हैं रे ?” . ग्वाले ने कहा, “रास्ते में पड़ी थीं। मैंने उठा लीं ।" मंगलदास ने उसे बहुत धमकाया, "ऐसे क्या किसी की भी चीज़ उठा लोगे ?” फिर कहा, "अशर्फियों की बात किसी से कहना मत ।” इस तरह मंगलदास अशर्फियाँ बीनता - बीनता एक फूँस की नीची-सी मढ़िया पर जा पहुँचा । पर यहाँ उसे बड़ी दुर्गन्ध आई । वहाँ खड़ा रहना उसके लिए मुश्किल था । लेकिन उसे ऐसा मालूम हो रहा था कि यहीं कहीं सोने का खजाना है। फिर भी उसके पास की बास और गन्ध के मारे वह अन्दर नहीं गया । उसे पता था
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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