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________________ अनवन * अरुण पड़ आई । पीड़ामस्त हो कहने लगी, "आप ऐसा कहेंगे तो मैं महेश के पास शिकायत पहुँचा दूँगी। मैं चिर- कुमारी रहने की शर्त पर यहाँ आई हूँ ।" इन्द्र, " अपने चिर- कौमार्य व्रत के विषय में तुमने महादेव महेश से भी सम्मति प्राप्त की है ?" बुद्धि, "आपको महेश जी से क्या ? वह तो देवों के देव हैं । वह निस्संग हैं ।" इन्द्र हँसते हुए बोले कि महादेव जी मृत्युलोक से आते कैसे निस्संग हैं, यह तो हमको ज्ञात नही; पर हम स्वर्गवासियों से उनका हँसी-मजाक सब चलता है । तुम घबराओ नहीं । बुद्धि इस सान्त्वना पर एकदम नाराज हो गई, और झपट्टे में वहाँ से चली गई । इन्द्र अकेले रहकर मुसकराने लगे ।
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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