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________________ किसका रुपया . ८१ समुद्र फैला हो । वह खुद इस पार हो, और पिल्ला दूसरी पार और वह उसके खेल में भाग न बँटा सकता हो। पिल्ला खेल के लिए हो और वह बस देखने के लिए । धीरे-धीरे वह पिल्ला कुंकू करता पास आगया। बिल्कुल पास आगया । रमेश मुग्ध बना उसे देखता रहा। पर मुंह से आवाज देकर या हाथ फैला कर उसे बुला न सका । पिल्ला पास से और पास आता हुआ उसे बड़ा प्यारा लगता था । और वह क्यों एकदम आकर रमेश की देह से सट नहीं जाता। रमेश एकदम निष्क्रिय और निर्विरोध पड़ा था। वह खुश होता कि पिल्ला उसकी छाती पर चढ़कर उसके एकाकीपन को भंग कर डालता। वह चाहता था कि कोई उसे अपने से छुड़ा दे। अपने में होकर वह एकदम अवसन्न और निरर्थक बन रहा था, जैसे वह है ही नहीं । पर पिल्ले ने पास आकर रमेश के मुंह के पास सूंघा, कमीज के छोर को सूंघा, फैले हुए पैरों की अंगुलियों के पास नाक लाकर उसे सूंघा, और फिर लौट कर चल दिया। रमेश उत्सुक था । वह बाट में था कि वह पिल्ला जरूर उससे उलझेगा। पर इतने पास आकर जब वह लौट चला तो रमेश ने एक भारी साँस छोड़ी। मानों उसके मन में हुआ कि ठीक है, यह भी मुझे नहीं चाहता । कोई उसे नहीं चाहता। ___इसी तरह काफी देर वह बैठा रहा। अब साँझ हो चलेगी। दूर पास पगडंडी पर घास में लोग आ-जा रहे हैं। दिन का काम शाम के आराम के किनारे लग रहा है। पेड़ चुप हैं। सड़क पर मोटरें इधर से उधर भागती निकल जाती हैं। होते-होते सहसा वह उठा। उसके मन में कुछ न रह गया था। न इच्छा , न
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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