SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाजेब कितना बदमाश है, बच्चों के हाथ से ऐसी चीजें लेता है । उसे पुलिस में दे देना चाहिए । उचक्का कहीं का! फिर मैंने पूछा कि आशुतोष कहाँ है ? उन्होंने बताया कि बाहर ही कहीं खेल-खाल रहा होगा। मैंने कहा कि बंसी, जाकर उसे बुला तो लाओ। बंसी गया और उसने आकर कहा कि वह अभी आते हैं। "क्या कर रहा है ?" "छुन्न के साथ गिल्ली-डण्डा खेल रहे हैं।" थोड़ी देर में आशुतोष पाया । तब मैंने उसे गोद में लेकर प्यार किया । आते-आते उसका चेहरा उदास होगया था और गोद में लेने पर भी वह विशेष प्रसन्न नहीं मालूम हुआ। ___ उसकी माँ ने खुश होकर कहा कि हमारे आशुतोष ने सब बातें अपने आप पूरी-पूरी बता दी हैं। हमारा आशुतोष बड़ा सच्चा लड़का है। __ आशुतोष मेरी गोद में टिका रहा । लेकिन अपनी बड़ाई सुन कर भी उसको कुछ हर्ष नहीं हुआ प्रतीत होता था। मैंने कहा कि आओ चलो । अब क्या बात है । क्यों हज़रत तुम को पाँच ही श्रोने तो मिले हैं न ? हमसे पाँच पाने माँग लेते तो क्या हम न देते ? सुना अब से ऐसा मत करना बेटे ! कमरे में ले जाकर मैंने उससे फिर पूछताछ की, "क्यों बेटा पतंग-वाले ने पाँच आने तुम्हें दिये न ?" "हाँ!" "और वह छुन्न के पास हैं ?" "हाँ !" "अभी तो उसके पास होंगे न ?"
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy