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________________ पाजेब मैंने बुलाकर कहा, "अच्छा सुनो। देखो, मेरी तरफ देखो, यह बताओ कि पाजेब तुमने छन्नू को दी है न ?" __ वह कुछ देर कुछ नहीं बोला । उसके चेहरे पर रंग आया और गया । मैं एक-एक छाया ताड़ना चाहता था । ___मैंने आश्वासन देते हुए कहा कि कोई बात नहीं । हाँ, हाँ, बोलो डरो नहीं । ठीक बताओ बेटे ! कैसा हमारा सच्चा बेटा है । मानो बड़ी कठिनाई के बाद उसने अपना सिर हिलाया। मैंने बहुत खुश होकर कहा कि दी है न छुन्नू को ? उसने सिर हिला दिया। अत्यन्त सांत्वना के स्वर में स्नेहपूर्वक मैंने कहा कि मुंह से बोलो । छुन्नू को दी है ? उसने कहा, "हाँ-आँ ।” मैंने अत्यन्त हर्ष के साथ दोनों बाँहों में लेकर उसे उठा लिया। कहा कि ऐसे ही बोल दिया करते हैं अच्छे लड़के । आशू हमारा राजा बेटा है । गर्व के भाव से उसे गोद में लिये-लिये मैं उसकी माँ की तरफ गया । उल्लासपूर्वक बोला कि देखो हमारे बेटे ने सच कबूल किया है । पाजेब उसने छुन्नू को दी है। सुनकर माँ उसकी खुश हो आई। उन्होंने उसे चूमा । बहुत शाबाशी दी और उसकी बलैयाँ लेने लगी! आशुतोष भी मुस्करा पाया अगरचे एक उदासीभी उसके चेहरे से दूर नहीं हुई थी। ___ उसके बाद अलग ले जाकर मैंने उससे बड़े प्रेम से पूछा कि पाजेब छुन्नू के पास है न ? जाओ माँग ला सकते हो उससे ? आशुतोष मेरी ओर देखता हुआ बैठा रह गया । मैंने कहा कि जाओ बेटे ! ले आओ।
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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