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________________ बिल्ली बच्चा २१३ गोलक में संयमपूर्वक वह जिन पैसों को जमा करती रही है उनमें अधिकांश कभी-कभी गायब भी हो गये हैं । और मिठाई अगर उसके संग्रहालय में कुछ बची भी रही है तो वह सूख - साख कर निकम्मी हो गई है । किन्तु इन बातों से पाठ सीखकर शरबती अपने स्वभाव को बदलने में नहीं लाती थी। पैसे मिलते तो फिर वहीं बटोर रखती और अपने हिस्से के खेल खिलौने या मेवा - मिठाई भी, उसी तरह बिज्जी के लिए जमा कर छोड़ती । इधर बिज्जू बिज्जू से कम न था । बड़ा ऊथमी लड़का था, शुरू से ही जैसे वह नवाब साहब है । शरबती का सब प्यार लेता है और बदले में उसे खूब मारता है। वह काटता है, और बहन को खूब रुलाता है । बड़ी बहन होने का जरा लिहाज़ नहीं करता । शरबती बेचारी खूब रोती है । रोती- रोती अम्मा के पास जाकर शिकायत करती है। पर, कुछ देर बीतती नहीं कि वही शरबती आकर कहने लगती है, “बिज्जी, ले, बल्फी नहीं लेगा ?" बिज्जू किलकारी भर कर लपकता है और बर्फी मुँह में रखकर शरबती का मुँह खैरोचने लगता है । जिस पर शरबती कहती है, “हट बदमाश !” बदमाश भला क्यों हटने वाला है ! वह दोनों हाथों के पंजों से उसका ऐसा मुँह खसोटता है कि शरबती चिल्ला पड़ती है, " देख ले री अम्मा । तू फिर मुझे कहेगी ।" पीढ़े पर बैठी अम्मा कहती है, “और खिला बर्फी । तुझे यह बड़ा निहाल करके रखेगा, जो तू इसे बर्फी खिलाती मानती नहीं ।" उसके चार महीने बाद महाशय विजयकुमार चल दिये। उन्हें बुलाने चेचक माता श्रा गई, और वह बचाये न बचे । पहले तो खूब बड़े-बड़े माता के दाने सारे बदन पर हो गये । देही पर कहीं
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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