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________________ राज-पथिक २०१ वह चल न पड़ेगा, उन समन्दरों को पार करने के लिए जो उसके अनन्त प्रतीक्षा-मग्न उस एकाकिनी राजकन्या के बीच में दुर्धर्ष होकर गरजते हुए लहरा रहे हैं ? अरे कैसा वह प्रतापी वीर है ? ___ और एक रात, जब कि चाँदनी छिटक रही थी, रात आधी से अधिक बीत गई थी, सब सोए पड़े थे। वाम पार्श्व में स्वच्छ शय्या पर शिशु राजकुमार को छाती में लेकर पटरानी स्वप्न-मग्न थी, तब राजेश्वर समस्त प्राभरण उतार, सब छोड़, निरीह पथयात्री बनकर, चुपचाप चल पड़ा । चल पड़ा, कि उन सातों समन्दरों को पाएगा और पार करेगा। वे कहाँ हैं ? पर वह महल छोड़कर चला जा रहा है दूर, और दूर । वह चलता ही चला जायगा; जहाँ कहीं होंगे, उन समन्दरों को पाएगा और पार करेगा। वह राजेश्वर चला जा रहा है अकेला, अनन्त-पथ-यात्री, कि नीलम देश की राजकन्या मुस्कराए कि उसका प्रतापी राजकुमार आया है !
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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