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________________ राज-पथिक १६६ करेगा ? क्या वह यहीं उनसे घिर कर बन्द रहेगा ? और वह नीलम देश की राजकन्या अकेली ही रहेगी? बीच में समन्दर सात हैं, और वे एक-से-एक दुर्लघ्य हैं, तभी तो प्रतापी राजकुमार को उन्हें पार करना है । क्या अनन्त क्षीरोदधि के बीच में सूने पड़े हुए महलों में कोई राजकुमार प्रतापी बन कर उसका अकेलापन हरन करने न पहुँचेगा ? किन्तु कहाँ है वह नीलम का देश ? कौन है उसका दिशादर्शक ? 'यह नहीं है' 'यह नहीं है' यह ध्वनि तो युवक राजकुमार के हृदय में स्पष्ट सुन पड़ती है । पर कहाँ है, इसका तो भीतर से कोई निर्देश ही नहीं प्राप्त होता । वह प्रतापी राजकुमार कब उस एकाकिनी के पास पहुँचेगा ?...सब छोड़ चल देना होगा। समन्दर सात हैं और जीवन थोड़ा है । समन्दरों की विकटता भी तो गहन है । सब छोड़ चल देना होगा, क्योंकि वह अनूदा रानी प्रतीक्षा में है। राह में कहाँ रुकना है, क्योंकि नीलम प्रदेश की राजकन्या अकेली है । अनन्त क्षीरोदधि के वक्ष में, सूने महलों में वह अकेली है। अब राजकुमार राजेश्वर है। विधि देखो कि छहों उसके भाई राजलिप्सा में मर-कट गए हैं। राजा बनने को रह गया है यह, जो हृदय में स्वप्न को पोसता रहा है, और जो दीन भी रहने दिया जाता तो क्या बुरा था। किन्तु, वह राजेश्वर है। चारों ओर वैभव है। अभाव वहाँ कहाँ है ? सब हैं, जो उसके आदेश की प्रतीक्षा में हैं। कब राजेश्वर की इच्छा हो और वे उसकी राह में बिछ जावें । अप्सराओंसी सुन्दरी सात उसकी रानियाँ हैं। उन सबके लिए वही पति है।
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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