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________________ १६६ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग ] "तो क्या पीती है ?" "हवा नहीं पीतीं ।" "बेटा, तो वहाँ गौ का दूध थोड़े ही होता है !" " तो हवा ही पीती हैं ।" "और नहीं तो क्या !" "अच्छा- आ !" बालक को यह सूचना बड़ी अद्भुत मालूम हुई । उसने सोचा कि जब रात चाँदनी होगी, और वह अकेला होगा, तब देखेगा हवा कैसे पी जा सकती है ? उसने उत्साह के साथ पूछा, "माँ ! वह कपड़े कैसे पहनती हैं ?" माँ ने कहा, "बेटा, खाना खाओ ।" बालक खाना तो खाने लगा, लेकिन नीलम के देश की रानी कपड़े कैसे पहनती हैं, यह उसकी समझ में नहीं आया । दो-चार कौर खाकर उसने फिर पूछा, "नहीं अम्मा, नीलम देश की रानी कपड़े कैसे पहनती हैं ?” ने कहा, "तु बताया तो था कि कपड़े कैसे पहनती है । रतन के जड़े कपड़े पहनती है । और सोने के तार के वे बुने होते हैं ।" बालक ने निश्चयपूर्वक कहा, "नहीं ।" राजपुत्र को सन्देह होने लगा है कि माँ को सब बातें ठीक अच्छी तरह से पता नहीं हैं। वह क्या जानता नहीं कि रतन पत्थर होते हैं, और सोना भारी होता है । यह बिल्कुल झूठ बात है कि नीलम देश की रानी जब हवा पीती हैं तब रतन - जड़े वसन पहनती हैं। पीती तो जरूर हवा ही होंगी, पर पहन रतन नहीं सकतीं । इसी से उसने निश्चयपूर्वक कहा, "नहीं ।"
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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