SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राज-पषिक १६५ राजकन्या बहुत छोटी-सी है । दूध-सी सफेद है और... राजकुमार का जी उस राजकन्या के चारों ओर घूम रहा है। वह खाने में नहीं है । उसने सोचा, राजकन्या अकेली क्यों है ? और वह प्रतापी राजकुमार जाने कितनी देर में सात समन्दरों को पार करके वहाँ पहुँचेंगे__ माँ ने कहा, "कौन रानी बेटा ? हाँ, वह नीलम के देश की रानी है । वह बेचारी तो सहस्रों वर्षों से अकेली ही है। प्रतापी राजकुमार जब वहाँ पहुँचेगा तब उसका उद्धार होगा और उस दिन उस नीलम के देश में दूध की वर्षा होगी।" बालक ने कहा, "माँ, वह राजकुमार कब पहुँचेगा ?" माँ ने कहा, "बेटा, खाना खाओ । कहानी रात को होगी।" राजकुमार चुप हो खाना खाने लगा। उसने सोचा कि कहानी तो रात को हो जायगी, पर राजकन्या तो अकेली है। वह प्रतापी राजकुमार वहाँ जाने कब पहुँचेगा ? क्योंकि, जो सात समंदर बीच में हैं, वे बहुत बड़े-बड़े हैं । ऐसे क्या बहुत ही बड़े हैं ? उन्हें तैरकर पार नहीं किया जा सकता ? और वह राजकन्या अपने महल की सीढ़ियों पर बैठी पानी की परियों से कैसे बात करती होगी? चुपचाप खाते-खाते सहसा बालक ने पूछा, “माँ, वह रानी क्या खाती हैं ?" ___ माँ ने कहा, "क्या खाती है ! समुन्दर के नीचे से पानी की परियाँ सीप के पात्रों में तरह-तरह के फल-फूल लाती हैं। फूलों को । वह सूंघ लेती है, फलों का रस ले लेती है। और वहाँ की हवा स्वच्छ दूध की-सी है । उसको पीती है।" । बालक ने कुछ विस्मित होकर कहा, "नहीं माँ, हवा नहीं पीतीं।"
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy