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________________ १५६ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] "कहाँ से आया, कौन है ?" "और तू कौन है जो आया है पूछने ?" "अपने आप बताओगी।"-धमकी देकर वह चलता बना। तब पति-पत्नी के सम्भाषण में व्यवधान डालकर माजी ने सूचना दी। “लल्लू , तुझे पूछता एक सिपाही आया था । एक महरिया भी नौकरी पूछती आई थी। पता लगता है, वह भी तेरी ही खोजखबर में थी।" ___"होंगे कोई, माजी। कुछ बात नहीं ।"-बड़े करारेपन से कहकर वह हँस दिया । माजी चली गई। लेकिन करारेपन से क्या और हँसी से क्या ? क्योंकि तभी उन्होंने आज ही शिमला चल देने की बात सोचनी प्रारम्भ कर दी। सिपाही और उस स्त्री-दोनों ही की बात ने कुछ हौल-सा जी में पैदा कर दिया। "क्या होगा ?"-करुणा ने पूछा । "कुछ नहीं होगा क्या ?"-हँसकर प्रमोद ने जवाब दे दिया । रधिया ने आकर मालकिन को खबर दी "कानपुर से आए हैं। कोई वकील हैं..." "नाम ?...."-नई उमर की मालिकन ने व्यग्रता से पूछा । "कहाँ ठहरे हैं ?" रधिया ने पता बता दिया। अगले रोज सबेरे उस मकान पर एक मोटर बालगी। रधिया मकान में आकर बोली "माजी, वह बाबू..."
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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