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________________ १३७ पड़े, और हुक्म के मुताबिक तत्परता के साथ झाड़न से मेज- कुर्सियों के झाड़े जाने के शब्द को आत्मतोष के भाव से सुनते-सुनते, वह इस समय जीवन के इसी अत्यन्त गौरवमय कार्य को सम्पादन कर रहे थे । तमाशा पास पहुँचकर विनोद ने कहा, "लायब्रेरी में डाक्टरी की किताबें बिलकुल नहीं हैं ?" आवाज पड़ते ही लायब्रेरीयन कुर्सी से हड़बड़ाकर उठे । यह उन्होंने क्या सुना – क्या नहीं है ? इस तरह समय से पहले इस बार - लायब्रेरी में आकर कोई वकील एकाएक किताब के लिए पूछेगा, तो क्या पूछेगा कि डाक्टरी की किताबें कितनी हैं ? ऐसी तो सम्भावना कैसे भी नहीं हो सकती । इसलिए अपने ऊपर अत्यन्त अविश्वास करते हुए, फिर हुक्म दिये जाने की प्रतीक्षा में, लायब्रेरीयन उत्तर - विमूढ़ होकर खड़े रहे । विनोद बोला, "मैं कहता हूँ, डाक्टरी की किताबें यहाँ क्या बिलकुल नहीं रहतीं ?" डरते-डरते पूछा, “डाक्टरी की ? - डाक्टरी की तो जी, यहाँ नहीं रहतीं ।" " एक भी नहीं है ?" "नहीं जी ।" "अच्छा, केटलाग लाओ ।" केटलाग देखने के बाद कहा, "अच्छा, इन्साइक्लोपीडिया कहाँ रखी हैं ?” एक छोटी-सी मेज पर तीन-चार इन पोथों की मोटी-मोटी जिल्दों को लेकर कमरे के एक कोने में बैठ गया । समय हो गया। वकील आ गये। कमरा बूटों की चर्मराहट से
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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