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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] को इस खबरदारी की ताकीद कर रहे हैं अपने आपको भी कर रहे हैं । मानो कह रहे हैं, “खबरदार, जो हमारे बच्चे को कुछ होने दिया।" फिर ऊपर आँख उठाकर सुनयना की तरफ देखकर कहा"कुछ हुआ भी हो । बिलकुल तो ठीक है। फिक्र ऐसी करने लगी, जाने क्या हो गया ! फ़िक्र को पास मत लाना। अपनी चिन्ता का असर बालक पर पड़ता है।" __इतनी बातों से माता का जी बालक की ओर से कुछ स्वस्थ हो गया। कुछ रुककर विनोद हँसा, बोला, “वाह, सुनयना, तुम भी खूब हो । छींक आ गई-दौड़ना । खाँसी आई, लाना डाक्टर । तुम तो तमाशा करती हो। जरा-जरा-सी बात को मन में मत लाया करो। कुछ हो जाय तो जाने क्या करो। सो बच्चा बहुत ही अच्छा है, जरा कुछ भी बात नहीं है । देखो न, कैसा सो रहा है।" इतना कहकर बालक के नन्हे से हाथ को उठाकर चूम लिया, और चला गया। खा-पीकर कचहरी पहुंचा, तो जरा सबेर थी। और वकील अभी नहीं आये थे। बार-रूम की लायब्रेरी के लायबेरियन चपरासी को मेज-कुर्सीअलमारी वगैरह झाड़न से झाड़-बुहार देने का हुक्म देकर आप एक तरफ़ एक आराम-कुर्सी पर पड़े आराम कर रहे थे। वकीलबाबुओं के आ धमकने से पहले उन्हें ये तीस-चालीस मिनट मिलते हैं, जब ये अपने प्रभुत्व का आतंक जमाने का अवसर पाकर जीवन की श्रेष्ठता अनुभव करते हैं, और मन-ही-मन उसका रसास्वादन करते हैं । टाँग फैलाफर और आँख मीचकर कुर्सी पर पड़े
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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