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________________ ११७ सुगढ़ और सुकर मूलतत्त्व पर अपनी सिरजन क्षमता को आजमाया है । प्रद्युम्न को संस्कार देकर बनाया गया है - " पूअर डेमन" । कभी कहते हैं "पुर्दमैन” - पुर्तगाल देश से चलकर आया हुआ जीव है । ज्यादा शरारत सूझती है, तो कहते हैं, यह हैं "फोर डेम्ड" | कहते हैं बस “फोरडेम्ड" है, घसखुदा बनेगा । तमाशा लेकिन ये नाम अधिकतर तात्कालिक स्फूर्ति के और क्षणस्थायी होते हैं। असली, बना-बनाया, यथागुण, परिचित, बढ़िया और चिरस्थायी नाम तो वही है - " काठ का उल्लू ।" और यह पाँच मास का जीव किसी नाम को स्वीकार करता, और उस पर प्रसन्नता प्रकट करता जान पड़ता है, तो इसी पर | सबसे ज्यादा प्यार का और खुशी का नाम यही है । एक नाम और भी है - नम्बर चार । आपको यह बतला देना इसलिए भी जरूरी है कि आप जीवन में गणित के एक मौलिक उपयोग से परिचित हो जायँ । देखा जाय तो यह नाम सबसे ज्यादा अर्थ और अभिप्राय पूर्ण है । कुनबे में चार बालक हैं, जिनके नाम स्थिर नहीं बनते-बिगड़ते रहते हैं, और इसलिए जिनका स्थायी नाम लल्लू ही पड़ा हुआ है। विनोद बाबू ने गड़बड़ मिटाने के लिए, सबसे बड़े का नम्बर एक, दूसरे का दो, और इसी तरह सबसे छोटे इस चौथे का " लल्लू नम्बर चार” – ये नाम रख दिये हैं। यह चौथा तो है काठ का उल्लू, लेकिन शेष तीनों को विनोद बाबू ने अपने-अपने नम्बर अच्छी तरह याद करा दिये हैं । बालक कोई मिलता है तो विनोद जोर से बोलते हैं— “लल्लू नम्बर... १” बालक बहुत जोर से चिल्ला कर कहता है - " दो ।"
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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