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________________ जैनेन्द्र के जीवन-दर्शन की भूमिका ५१ प्रेम में अपना स्वत्व मिटा देने के लिए स्वय को नाना प्रकार की यातनाए देती है । वह अपनी हार्दिकता के सहारे ही प्रिय का साक्षात्कार करना चाहती है। 'परख' के प्रारम्भिक अशो मे कट्टो और मास्टर साहब के मध्य होने वाला वार्तालाप बहुत आकर्षक प्रतीत होता है । जैनेन्द्र के साहित्य मे अनेको स्थल भरे पडे है, जिनमे वे निरे श्रद्धालु और प्रेमी रूप मे ही व्यक्त होते हैं । बुद्धि की उष्मा तनिक भी नही पहुच पाती। मानवता के शाश्वत प्रश्नो पर विचार जैनेन्द्र ने मानव जीवन के शाश्वत प्रश्नो पर विशद् विवेचन किया है। ईश्वर, जीव, मृत्यु, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि विषयो पर उन्होने अपने मौलिक विचार प्रस्तुत किए है, जो किसी भी दार्शनिक मतवाद मे बघे नही है । उनके अनुसार दार्शनिक वही है, जो जीवनद्रष्टा है । जीवनद्रष्टा जीवन और जगत् की उपेक्षा करके नितात एकाकी बन जगल मे नही भटकता वरन् जीवन को घटनाग्रो प्रोर द्वन्द्वो में सत्य का अन्वेषण करता है। जैनेन्द्र ईश्वरवादी विचारक है । उनके अनुसार ईश्वर का अस्तित्व ही एकमात्र सत्य है । उसकी मत्ता को नकारा नही जा सकता। क्योकि तर्क की गति वही सम्भव है, जहा व्यक्ति की पहुंच है, किन्तु जो विषय बुद्धि की पहुच के बाहर है उसे तर्क द्वारा भी नही सिद्ध किया जा सकता। जैनेन्द्र के अनुसार मनुष्य की शक्ति अपूरण है। वह अपनी अपूर्णता से पूर्ण ब्रह्म का साक्षात्कार नही कर सकता। अतएव ईश्वर के अस्तित्व को उन्होने श्रद्धा और विश्वास के आधार पर ही स्वीकार किया है। जैनेन्द्र के उपन्यास और कहानियो मे पग-पग पर उनकी वास्तविकता दृष्टिगत होती है । उनकी अतिशय भाग्यवादिता ईश्वरीय श्रद्धा का ही परिणाम है । जैनेन्द्र के साहित्य मे ईश्वर-भक्ति, पूजा, कर्मकाण्ड आदि के व्यक्त रूप में दृष्टिगत नही होती, वरन् उनकी आस्था पात्रो के हृदय मे अन्तनिष्ठ है। उनका हृदयगत प्रेम, त्याग, सेवा, समर्पण भाव ईश्वरीय भक्ति का ही द्योतक है। ईश्वर ही अप्रत्यक्ष रूप मे समस्त सृष्टि का सचालक है । 'सुखदा' में उन्होने ईश्वर को सूत्रधार के रूप मे स्वीकार किया है। ईश्वर को जानने के लिए उनके पात्रो में अतीव अविकलता है । 'व्यर्थ प्रयत्न' में ईश्वर के समक्ष समर्पित होने के लिए व्यक्ति का अह छटपटाता १ जनेन्द्र कुमार 'सुखदा', प्र० स०, दिल्ली, १६५२, पृ० १८ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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