SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठ अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ अशुद्ध शुद्ध 192 176 उत्बुद्ध उत्कद्ध 256 रूपकार रूपाकार 162 अवलम्ब ही अवलम्ब की 256 विद्या का क्षेत्र विधा का क्रोध 'बोध' कितना क्षेत्र इतना 167 समृद्ध करता समृद्व प्रतीत 256 अभिव्यक्ति अभिव्यक्त 261 कह पन्था क पन्था 197 निर्वैयक्तिक निर्वैयक्तिक 262 निश्रित / निहित 200 'विज्ञान' 'वि-ज्ञान' 264 साहित्य- साहित्यिक 201 साहित्य ने साहित्य मे प्रक्रिया प्रक्रिया 201 मिश्रण नही है मिश्रण है 268 सारा धन सारा भ्रम 203 नैतिक अनैतिक 266 नही प्रतीत प्रतीत होती 210 हृदय रूप छद्म हृदय रूप होती 210 आत्मदास आत्मदान 270 जैनेन्द्रकुमार जैनेन्द्र के 215 आनन्द और आदर्श और अनुसार यथार्थ यथार्थ 271 उसे 216 अपूर्ण प्रापूर्ण 277 निमृत निभृत 222 निर्णय निषेध 278 जीवन मे जीवन ने 222 जागितभेद जातिगत भेद 278 निमत निसृत 222 गहरी व्यवस्था गहरी व्यथा 276 तद्यपि तथापि 226 अपनी निजत्व अपने निजत्व 280 अन्तभूत अन्तर्भूत 226 'अपना प्रदर्शन 'अपना-अपना 283 क्या में यही क्या मै यही अपना भाग्य भाग्य' 284 को अतिक्रमिक को अतिक्रमण 226 धार्मिक आर्थिक 284 की यथातथ्य की यथातश्य 235 शब्दो का द्वन्द्वो का झलक 236 प्रेम का प्रेम का 285 धुधात्मक द्वन्द्वात्मक आधार अभाव 287 'कल्याण' 'कल्याणी' 238 निषेध न करके निषेध करके 287 'प्रीति इतनी प्रीति की 246 विद्या है विधा है 265 राज्य से पर राज्य से परे 247 आवश्यकतागत आवश्यकतावश 300 मे जानता कुछ मे जानना कुछ 247 विकसिक विकसित नही है, नहीं है, 250 पारम्परित पारम्परिक 308 आम वादिता अहवादिता 252 जेनेन्द्र जैनेन्द्र 306 विचार-भौक्तिक विचार२५२ जैनेन्द्र से जैनेन्द्र के मौक्तिक 257 शेष साहित्य श्रेष्ठ साहित्य 306 ये मौक्तिन' ये मौक्तिक REENTERTREERa हम
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy