SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन पारस्परिक प्रेम का आधार है । जैनेन्द्र के अनुसार मार्क्स का दृष्टिकोण सराह - नीय है, किन्तु वह अपने लक्ष्य की पूर्ति के हेतु जिन साधनो की कल्पना करता है, वे प्रग्राह्य है ।' जैनेन्द्र की दृष्टि मे मार्क्सवादी नैतिकता प्रकृत्त नही है । उनकी दृष्टि मे जबर्दस्ती धन का अपहरण करके समता लाने की नीति प्रनेतिकता तथा अनौचित्य को बढावा देती है । जैनेन्द्र ने अपने साहित्य में अर्थ की आवश्यकता का निषेध नही किया है किन्तु उसकी प्राप्ति के लिए धर्म को आवश्यक बताया है । जैनेन्द्र ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की समष्टि में ही व्यक्ति की पूर्णता को स्वीकार किया है । उनके अनुसार अर्थप्राप्ति की वममूलक दृष्टि ही मानव कल्याण में सहायक हो सकती है । उनके अनुसार प्रथ धर्म के स्थान पर राजनीति से जुडकर कभी भी व्यक्ति के हित का पोपक नही हो सकता । जैनेन्द्र के साहित्य में भी वर्गहीन समाज की स्थापना पर बल दिया गया है । 'सोद्देश्य' कहानी मे वे साम्यवादियो की भाति ऐसे राज्य की स्थापना करना चाहते है, 'जिसमे जो दीन हे, वे दीन नही रहेगे, जिनके हाथ में श्रम है, वे ही विधाता होगे ।" जैनेन्द्र के द्वारा कल्पित वर्गहीन समाज मे व्यक्ति की सम्भावनाए विनष्ट नही होती । उनका आदर्श व्यष्टि और समष्टि, भौतिक और आध्यात्मिक, धर्म और प्रर्थ आदि दो किनारो के मध्य सामजस्य स्थापित करना है । जैनेन्द्र के अनुसार वस्तु के अधिकाधिक उत्पादन प्रोर वितरण रो ही जीवन की समस्त समस्याओ का समाधान सम्भव नही हो सकता । वे सुखमय जीवन के लिए आत्मगत सुख और शान्ति को अनिवार्य मानते ह । जैनेन्द्र की दृष्टि मे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र ही नही वरन् विश्व के मूल मे प्रेम ही प्रधान है ।" जैनेन्द्र पर गाधी जी के आदर्शों की गहरी छाप दृष्टिगत होती हे । १ 'मार्क्स से मै सर्वथा सहमत हो सकता हू, लेकिन हिसा को गलत और अहिसा को ठीक समझने से छुट्टी नही पा सकता ।' -- जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० ७७ । २ मार्क्स के अनुसार -- ' धर्म जनता के लिए अफीम हे तथा समाज का रोग है ।' 'मार्क्सवाद और मूल दार्शनिक प्रश्न', पृ० स० ८६, ६० । ३ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० स० १८८ । ४ जैनेन्द्रकुमार जैनेन्द्र की कहानिया, भाग ७, पृ० स० ४६ | ५ ' वर्गहीन समाज वह होगा, जो प्रेम की शक्ति से चलेगा ।' -- जैनेन्द्रकुमार ' समय और हम', पृ० ८३। •
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy