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________________ २२६ जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन लोलुपता आदि दूषित भावनाए भरी हुई है, किन्तु ऊपर से वे आदर्श बने रहते है। व्यक्ति की ऐसी प्रवृत्तियो के कारण ही जैनेन्द्र आदर्श को मानव के अन्तस् मे खोजना श्रेयस्कर समझते है । आत्म-परिष्कार जैनेन्द्र के साहित्य मे भले-बुरे की आलोचना के स्थान पर आत्म-निरीक्षण और आत्म-परिष्कार पर ही बल दिया गया है । उनके अनुसार दूसरे की आलोचना करने से एक ओर तो 'पर' का निषेध होता है, दूसरी ओर 'स्व' का अहभाव पुष्ट होता है, किन्तु आत्मनिरीक्षण द्वारा व्यक्ति अधिकाधिक विनम्र तथा सहनशील बनता है। जैनेन्द्र के साहित्य मे हार्दिकता और प्रासादिकता का आधिक्य है । आत्मगत स्नेह, सहानुभूति और आत्मसमर्पण का भाव ही वह शस्त्र है, जिससे उनके पात्र अन्य पर विजय प्राप्त करने में समर्थ होते है। वस्तुत जैनेन्द्र की व्यक्ति सम्बन्धी दृष्टि व्यावहारिक जीवन की सत्यता पर आधृत है, आदर्श की थोथी भूमिका पर नही। ___ जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति यथार्थ जीवन की गहराई से ही प्रादर्श की ऊचाई की ओर उन्मुख होता है । आदर्शवादी साहित्यकार व्यक्ति के पूर्ण रूप को अपने साहित्य मे विवेचित करते है। किन्तु जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति अपूर्ण है, यही कारण है कि वह है। व्यक्ति और समाज व्यक्ति समाज की सापेक्षता मे ही अपने अस्तित्व को स्थिर रख सकता है। समाज से बचकर अलग रहने मे व्यक्ति के स्वरूप और उसकी प्रकृति का कोई महत्व नही रहता । अतएव व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसकी निजता के साथ ही साथ सामाजिकता का ज्ञान भी अनिवार्य है। राजनीति, समाज, धर्म, अर्थ आदि विभिन्न क्षेत्रो की सापेक्षता मे ही व्यक्ति जीवन की सार्थकता सम्भव है । जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हुए भी समाज के प्रति उत्तरदायी है । वह समाज का अविभाज्य अग है। जैनेन्द्र की दृष्टि मे 'व्यक्ति जीवन का उद्देश्य अपनी निजत्व को समग्र एव समग्र को निजत्व मे देखना है।" जैनेन्द्र के साहित्य मे समाज की सीमानो और मर्यादापो का पूरा १ जैनेन्द्र कुमार 'जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ६, तृ० स०, पृ० स० ११० । २ जैनेन्द्र कुमार जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ६, तृ० स०,पृ० स०११-१३ । ३ जैनेन्द्र कुमार 'कल्याणी', १९५६, १० स० ८५। जैनेन्द्र कुमार 'विवर्त', पृ० स० ४० । ir nr x
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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