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________________ ( २६ ) जायेगा और यदि गर्मों के भाव को चित्त देकर मन को ज़रा __ हिला देगा तो उसके शरीर में देखते २ गर्मी श्रा जायगी । तुम मेरे पाल बैठो, मैं तुम को यह अग्नि दूंगा और जो तुम्हें बाध अग्नि की आवश्यक्ता है तो यह दियासलाई फी डिबिया मोजूद है, लकड़ी ओर. कराडे भी रक्खे हुए है, अभी अग्नि प्रज्वलित हो जायगी।" - दोनों ने स्वीकार किया, अभी संसार में साधु है । भार उसले प्रसन्न होकर अपनी २ राह ली । (३) अब बुद्धदेव काशी में श्राकर बौद्ध धर्म का प्रचार करने लगे। एक ब्राह्मण जाति का जवान लडका उन के पास आकर कहने लगा-"ये मुंडमुन्डे ! तुझे किसने वुद्ध बनाया. है और तू कैले अपने आप को संसार का गुरु कहता है ? तुझे गुरु भाई का क्या अधिकार है ? तू क्षत्री था। क्षत्री धर्म का पालन करना । ब्राह्मणों की पदवी पर क्यो हस्तक्षेप कर ___ बुद्धदेव मुस्कराये । इसे क्रोध आ गया, और गालियों पर गालियाँ देना प्रारम्भ किया । बुद्धदेव चुपचाप खड़े रह गए । जब गालियां समाप्त हुई, आपने नघ्रभाव से पूछा"बेटे ! बदि तू कह चुका हो तो मैं भी कुछ अपने बचन सुनाऊँ।" यह फिर वोखला उठा । फिर अनुणित और असभ्य दाते कहने लगा । युद्धदेव सहनशीलता से उस की बातों
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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