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________________ २८ ] जैनधर्ममें देव और पुरुषार्थ । པ་ ས ནམ་ ་ 14 ་ག་བ་ है । इससे कडा, कंठी, अंगूठी, वाली, भुजवन्ध, हार आदि अनेक गहने बन सक्ते हैं । एक गहना एक समयमें बनेगा दूसरा बनाने के लिये पहलेको तोडना होगा। जिस समय कंठीको तोडकर कडा बनाया जायगा | कंठीका नाश जब होगा तब ही कडेकी उत्पत्ति होगी. सोनापना रहेगा । इसलिये सोना गुण पर्यायवान व उत्पाद व्यय श्रौव्यरूप है । चाटी में सफेदी चिकनई आदि गुण हैं। चाढीकी थाली, गिलास, कटोरी, चमची, आदि पर्यायें वन सक्ती है । एक प्रकारकी चांदी की एक वस्तु ही एक समय में बनेगी। दूसरी वस्तु बनानेके लिये पहलीको तोडना पडेगा । चादीका कभी नाग नहीं होगा इसलिये चाढी गुण पर्यायवान व उत्पाद व्यय धौव्यरूप सिद्ध हो जाती है । गेहूं में गेहूंके गुण है । सेरभर गेहूं को पीसकर आटा बनान है. आटेको पानीसे भिगोकर लोई बनाते है, लोईको गेटीकी शकल में वेलते हैं, रोटीको पकाते हैं, गेहूकी कई पर्यायें बदलीं, गेहूंपना चना ही रहा । इसलिये गेहूं गुण पर्यायवान व उत्पाद व्यय धौव्यरूप है । लकडीमे लकडीके गुण है। उससे कुरसी. पलंग, तिपाई, मेज, पाटा, तखत आदि अनेक चीजें बना सक्ते है । एक लकडीसे एक चीज एक समयमे तैयार होगी उसे तोडकर दूसरी चीज बनानी होगी, लकडी बनी रहेगी, इसलिये लकडी गुण पर्यायवान व उत्पाद व्यय धौव्यरूप है । कपासमे कपासके सफेदी आदि गुण हैं। थोडीसी कपास हमारे 'पास है, इसको तागेमे बदल सकते है, तागोंसे कपडेका धान वुन सकते हैं, उस थानसे कुरता, टोपी, अंगरखा, पायजामा, घोती आदि
SR No.010351
Book TitleJain Dharm me Dev aur Purusharth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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