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________________ जनधर्म का प्राण इसका उत्तर हमे उपलब्ध जैन आगमो से मिल जाता है । उपलब्ध आगमो मे भाग्यवश अनेक ऐसे प्राचीन स्तर सुरक्षित रह गए है जो केवल महावीर - समकालीन निर्ग्रन्थ- परपरा की स्थिति पर ही नही बल्कि पूर्ववर्ती पाश्र्वापत्यिक निर्ग्रन्थ-परपरा की स्थिति पर भी स्पष्ट प्रकाश डालते है । 'भगवती' और 'उत्तराध्ययन' जैसे आगमो में वर्णन मिलता है कि पारवपित्यिक निर्ग्रन्थ-- जो चार महाव्रतयुक्त थे उनमे से अनेको ने महावीर का शासन स्वीकार करके उनके द्वारा उपदिष्ट पाँच महाव्रतों को धारण किया और पुरानी चतुर्महाव्रत की परपरा को बदल दिया, जबकि कुछ ऐसे भी पार्श्वोपत्यिक निर्ग्रन्थ रहे जिन्होने अपनी चतुर्महाव्रत की परपरा को ही कायम रखा। चार के स्थान मे पाँच महाव्रतो की स्थापना महावीर ने क्यो की और कब की यह भी ऐतिहासिक सवाल है । क्यो की— इस प्रश्न का जवाब तो जैन ग्रन्थ देते है, पर कब की— इसका जवाब वे नही देते । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह इन चार यामो -- महाव्रतो की प्रतिष्ठा भ० पार्श्वनाथ के द्वारा हुई थी, पर निर्ग्रन्थ परपरा मे क्रमश. ऐसा शैथिल्य आ गया कि कुछ निर्ग्रन्थ अपरिग्रह का अर्थ सग्रह न करना इतना ही करके स्त्रियो का संग्रह या परिग्रह बिना किए भी उनके सम्पर्क से अपरिग्रह का भग समझते नही थे । इस शिथिलता को दूर करने के लिए भ० महावीर ने ब्रह्मचर्य व्रत को अपरिग्रह से अलग स्थापित किया और चतुर्थी व्रत शुद्धि लाने का प्रयत्न किया । महावीर ने ब्रह्मचर्यव्रत की अपरिग्रह से पृथक् स्थापना अपने तीस वर्ष के लम्बे उपदेश - काल मे कब की यह तो कहा नही जा सकता, पर उन्होने यह स्थापना ऐसी बलपूर्वक की कि जिसके कारण अगली सारी निर्ग्रन्थ- परपरा पच महाव्रत की ही प्रतिष्ठा करने लगी, और जो इने-गिने पाश्र्वापत्यिक निर्ग्रन्थ महावीर के पच महाव्रतशासन से अलग रहे उनका आगे कोई अस्तित्व ही न रहा । अगर बौद्ध पिटकों में और जैन आगमो मे चार महाव्रत का निर्देश व वर्णन न आता तो आज यह पता भी न चलता कि पारवपित्यिक निर्ग्रन्थ- परपरा कभी चार महाव्रतवाली भी थी । ܘܗ १. 'उत्थान' महावीराक ( स्था० जैन कान्फरेन्स, बम्बई), पृ० ४६ | २ . वही ।
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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