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________________ : ३ : निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय की प्राचीनता श्रमण निर्ग्रन्थ धर्म का परिचय ब्राह्मण या वैदिक धर्मानुयायी सप्रदाय का विरोधी संप्रदाय श्रमण संप्रदाय कहलाता है, जो भारत मे सम्भवत वैदिक सप्रदाय का प्रवेश होने के पहले ही किसी-न-किसी रूप मे और किसी-न-किसी प्रदेश मे अवश्य मौजूद था । श्रमण सम्प्रदाय की शाखाएँ और प्रतिशाखाएँ अनेक थी, जिनमे साख्य, जैन, बौद्ध, आजीवक आदि नाम सुविदित है । पुरानी अनेक श्रमण सप्रदाय की शाखाएँ एव प्रतिशाखाएँ, जो पहले तो वैदिक संप्रदाय की विरोधिनी रही, वे एक या दूसरे कारण से धीरे-धीरे बिलकुल वैदिक-सप्रदाय मे घुलमिल गयी है । उदाहरण के तौर पर हम वैष्णव और शैव संप्रदाय का सूचन कर सकते है । पुराने वैष्णव और शैव आगम केवल वैदिक-सप्रदाय से भिन्न ही न थे, अपितु उसका विरोध भी करते थे । और इस कारण से वैदिक सप्रदाय के समर्थक आचार्य भी पुराने वैष्णव और शैव आगमो को वेदविरोधी मानकर उन्हें वेदबाह्य मानते थे । पर आज हम देख सकते है कि वे ही वैष्णव और शैव- सप्रदाय तथा उनकी अनेक शाखाएँ बिलकुल वैदिक सम्प्रदाय मे सम्मिलित हो गई है । यही स्थिति साख्य- सप्रदाय की है, जो पहले अवैदिक माना जाता था, पर आज वैदिक माना जाता है । ऐसा होते हुए भी कुछ श्रमण सप्रदाय अभी ऐसे है जो खुद अपने को अ-वैदिक ही मान-मनवाते हैं और वैदिक विद्वान् भी उन सम्प्रदायो को अवैदिक ही मानते आए है । इन सम्प्रदायो मे जैन और बौद्ध मुख्य है । श्रमण सप्रदाय की सामान्य और सक्षिप्त पहचान यह है कि वह न तो अपौरुषेय - अनादिरूप से या ईश्वररचित रूप से वेदो का प्रामाण्य ही मानता है और न ब्राह्मणवर्ग का जातीय या पुरोहित के नाते गुरुपद स्वीकार करता
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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