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________________ जैनधर्म का प्राण पार्श्वनाथ की निर्ग्रन्थ-परपरा तपश्चर्या-प्रधान रही। उस परपरा मे भ० महावीर ने शुद्धि या विकास का तत्त्व अपने जीवन के द्वारा भले ही दाखिल किया हो, पर उन्होंने पहले से चली आनेवाली पापित्यिक निर्ग्रन्थ-परपरा मे तपोमार्ग का नया प्रवेश तो नही किया। इसका सबूत हमे दूसरी तरह से भी मिल जाता है। जहाँ बुद्ध ने अपनी पूर्व-जीवनी का वर्णन करते हए अनेकविध तपस्याओं की नि.सारता अपने शिष्यो के सामने कही है वहाँ निर्ग्रन्थ तपस्या का भी निर्देश किया है। बुद्ध ने ज्ञातपुत्र महावीर के पहले ही जन्म लिया था और गृहत्याग करके तपस्वी-मार्ग स्वीकार किया था । उस समय में प्रचलित अन्यान्य पथो की तरह बुद्ध ने निर्ग्रन्थ पथ को भी थोडे समय के लिए स्वीकार किया था और अपने समय मे प्रचलित निर्ग्रन्थ-तपस्या का आचरण भी किया था। इसीलिए जब बुद्ध अपनी पूर्वाचरित तपस्याओ का वर्णन करते हैं, तब उसमे हूबहू निर्ग्रन्थ-तपस्याओ का स्वरूप भी आता है, जो अभी जैन ग्रन्थों और जैन-परपरा के सिवाय अन्यत्र कही देखने को नहीं मिलता। महावीर के पहले जिम निर्ग्रन्थ-तपस्या का बुद्ध ने अनुष्ठान किया वह तपस्या पाश्र्वापत्यिक निर्ग्रन्थ-परपरा के सिवाय अन्य किसी निर्ग्रन्थ-परंपरा की सम्भव नही है, क्योकि महावीर तो अभी मौजूद ही नही थे और बुद्ध के जन्मस्थान कपिलवस्तु से लेकर उनके साधनास्थल राजगृही, गया, काशी आदि मे पाश्वपित्यिक निर्ग्रन्थ-परपरा का निर्विवाद अस्तित्व और प्राधान्य था। जहाँ बुद्ध ने सर्व प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन किया वह सारनाथ भी काशी का ही एक भाग है, और वह काशी पार्श्वनाथ की जन्मभूमि तथा तपस्याभूमि रही है । अपनी साधना के समय जो बुद्ध के साथ पाँच दूसरे भिक्षु थे वे बुद्ध को छोडकर सारनाथ-इसिपत्तन मे ही आकर अपना तप करते थे। आश्चर्य नहीं कि वे पॉच भिक्षु निर्ग्रन्थ-परम्परा के ही अनुगामी हो । कुछ भी हो, पर बुद्ध ने निर्ग्रन्थ तपस्या का, भले ही थोड़े समय के लिए, आचरण किया था इसमे कोई सदेह नही है। और वह तपस्या पाश्र्वापत्यिक निर्ग्रन्थ-परपरा की ही हो सकती है। इससे हम यह मान सकते हैं कि ज्ञातपुत्र महावीर के पहले ही निर्ग्रन्थ-परपरा का स्वरूप तपस्या-प्रधान ही था।
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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