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________________ जैनधर्म का प्राण नया विचार प्रकट किया। वह यह कि अगर अप्रमत्त भाव से कोई जीवविराधना-हिंसा हो जाए या करनी पड़े तो वह मात्र अहिंसाकोटि की अतएव निर्दोष ही नहीं है, बल्कि वह गुण (निर्जरा) वर्धक भी है। इस विचार के अनुसार, साधु पूर्ण अहिंसा का स्वीकार कर लेने के बाद भी अगर सयत जीवन की पुप्टि के निमित्त, विविध प्रकार की हिंसारूप समझी जानेवाली प्रवृत्तियाँ करता है तो वह सयमविकास मे एक कदम आगे बढ़ता है। यही जैन परिभाषा के अनुसार निश्चय अहिसा है । जो त्यागी बिलकुल वस्त्र आदि रखने के विरोधी थे वे मर्यादित रूप में वस्त्र आदि उपकरण (साधन) रखनेवाले साधुओं को जब हिसा के नाम पर कोसने लगे, तब वस्त्रादि के समर्थक त्यागियो ने उसी निश्चय सिद्धान्त का आश्रय लेकर जवाब दिया कि केवल सयम के धारण और निर्वाह के वास्ते ही, शरीर की तरह मर्यादित उपकरण आदि का रखना अहिंसा का बाधक नही। जैन साधुसघ की इस प्रकार की पारस्परिक आचारभेदमूलक चर्चा के द्वारा भी अहिंसा के ऊहापोह मे बहुत-कुछ विकास देखा जाता है, जो ओघनियुक्ति आदि मे स्पष्ट है। कभी-कभी अहिंसा की चर्चा शुष्क तर्क की-सी हुई जान पड़ती है। एक व्यक्ति प्रश्न करता है कि अगर वस्त्र रखना ही है तो वह बिना फाड़े अखण्ड ही क्यो न रखा जाए, क्योकि उसके फाडने से जो सूक्ष्म अणु उडेगे वे जीवघातक जरूर होगे। इस प्रश्न का जवाब भी उसी ढग से दिया गया है। जवाब देनेवाला कहता है कि अगर वस्त्र फाडने से फैलनेवाले सूक्ष्म अणुओ के द्वारा जीवघात होता है, तो तुम जो हमे वस्त्र फाडने से रोकने के लिए कुछ कहते हो उसमे भी तो जीवघात होता है न ?-इत्यादि । अस्तु । जो कुछ हो, पर हम जिनभद्रगणि की स्पष्ट वाणी मे जैनपरपरासमत अहिसा का पूर्ण स्वरूप पाते है। वे कहते है कि स्थान सजीव हो या निर्जीव, उसमे कोई जीव घातक हो जाता हो या कोई अघातक ही देखा जाता हो, पर इतने मात्र से हिंसा या अहिंसा का निर्णय नही हो सकता । हिंसा सचमुच प्रमाद-अयतना-असयम मे ही है, फिर चाहे किसी जीव का घात न भी होता हो । इसी तरह अगर अप्रमाद या यतना-सयम सुरक्षित है, तो जीवघात दिखाई देने पर भी वस्तुतः अहिंसा ही है।
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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