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________________ जैनधर्म का प्राण प्रस्तुत वक्तव्य पूर्ण करने से पूर्व जैन दर्शन की सर्वमान्य दो विशेषताओं का उल्लेख करना आवश्यक प्रतीत होता है। अनेकान्त और अहिसा इन दो मुद्दो की चर्चा पर ही समग्र जैन साहित्य का निर्माण हुआ है । जैन आचार और सम्प्रदाय की विशेषता इन दो मुद्दो द्वारा ही स्पष्ट की जा सकती है । सत्य वस्तुत. एक ही होता है, परन्तु मनुष्य की दृष्टि उसे एक रूप मे ग्रहण नही कर सकती ।। अतः सत्य के दर्शन के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी दृष्टि-मर्यादा विकसित करे और उसमे सत्यग्रहण की यथासम्भव सभी रीतियो को स्थान दे । इस उदात्त और विशाल भावना मे से अनेकान्त की विचारसरणी का जन्म हुआ है । इस सरणी का आयोजन वादविवाद मे जय प्राप्त करने के लिए अथवा वितण्डावाद के दावपेच खेलने के लिए अथवा तो शब्दच्छल की चालाकी का खेल खेलने के लिए नही हुआ है, परन्तु इसका आयोजन तो जीवन-शोधन के एक भाग के रूप मे विवेकशक्ति को विकसित करने और सत्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए हुआ है। इससे अनेकान्त-विचारसरणी का सही अर्थ यह है कि सत्यदर्शन को लक्ष्य मे रखकर उसके सभी अशो और भागो को एक विशाल मानसवर्तुल मे योग्य स्थान देना। जैसे-जैसे मनुष्य की विवेकशक्ति बढ़ती जाती है वैसे वैसे उसकी दष्टिमर्यादा बढ़ने के कारण उसे अपने भीतर रही हुई सकुचितताओं और वासनाओ के दबाव का सामना करना पडता है। जब तक मनुष्य सकुचितता और वासनाओ का सामना न करे तब तक वह अपने जीवन मे अनेकान्त के विचारों को वास्तविक रूप से स्थान दे ही नही सकता । इसीलिए अनेकान्त के विचार की रक्षा एव वृद्धि के प्रश्न से ही अहिंसा का प्रश्न पैदा होता है । जैन अहिसा सिर्फ चुपचाप बैठे रहने मे या धन्धे-रोज़गार का त्याग करने मे या ठूठ-सी निश्चेष्ट स्थिति साधने में परिसमाप्त नहीं होती, परन्तु वह अहिसा सच्चे आत्मिक बल की अपेक्षा रखती है। किसी भी विकार के पैदा होने पर, किसी भी वासना के झॉकने पर अथवा किसी भी सकुचितता के मन मे आने पर जैन अहिंसा कहती है कि तू इन विकारो, इन वासनाओं और इन सकुचितताओ से मत आहत हो, मत हार, दब नही। तू उनका सामना कर और उन विरोधी बलों को पराजित कर । आध्या
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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