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________________ के कारण अधिकार छीनना अन्याय है । अगर यह नियम बनाया जाय कि जो इतना विद्वान हो उसे इतने विवाह करने का अधिकार है और जो विद्वान नहीं है उसे विवाह का अधिकार नहीं है, तो क्या यह ठीक होगा ? दूसरी बात यह है कि जिस विषय का अधिकार है उनी विषय की समता, विपमना, योग्यता, अयोग्यता का विचार करना चाहिये । किसी के पैर में चोट धागई है तो बहुत से बहुत वह जूना नहीं पहिनेगा, परन्तु वह कपड़ भी न पहिने, यह कहाँ का न्याय है ? किसी भी अधिकार के विषय में प्राय चार बातों का विचार किया जाता है । योग्यता, आवश्यक्ता, मामाजिक लाभ, स्वार्थत्याग। पुनर्विवाह के विषय में भी हम इन्हीं बातों पर विचार करेंगे। स्त्रियों में पुनर्विवाह की योग्यता तो है ही, क्योंकि पुनर्विवाह में भी वे सन्तान पैदा कर सकती है । संभोगशक्ति. रजोधर्म तथा गार्हस्थ्यजीवन के अन्य कर्तव्य करने की क्षमता उन में पाई जाती है । श्रावश्यक्ता मी है, क्योंकि विधवा हो जाने पर भी उनकी कामवासना जाग्रत रहती है, जिसके सीमित करने के लिये विवाह करने की ज़रत है। इसी तरह सन्तान की इच्छा भी रहती है, जिनके लिये विवाह करना चाहिये । वैध. व्यजीवन बहुन पगश्रित, अार्थिक कष्ट, शोक, चिन्ता और संक्लेशमय तथा निगधिकार होता है, इसलिये भी उन को पुनर्विवाह की श्रावश्यक्ता है। कुछ इनीगिनी विधवाओं को छोड़ कर बाकी विधवात्रों का जीवन समाज के लिये मार सरीखा होता है । वैधव्यजीवन के भीतर कैट हो जाने से बहुत से पुरुषों को स्त्रियाँ नहीं मिलती। इसलिये उनका जीवन दुःखमय या पतित हो जाता है । समाज की संरया घटती है । विधवाविवाह से ये समस्याएं अधिक अंशो में हल हो जाती है. इसन्निये विधवाविवाह से सामाजिक लाम
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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