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________________ ( ६६ ) ममाघान-श्रेष्ठ मार्ग का उपदेश देना बुग नहीं है, परन्तु जो उस श्रेष्ठमार्ग का अवलम्बन नहीं कर सकते उनको उससे उनम्ती श्रेणी के मार्ग में मी न चलने देना मत के नाम पर मनवाला हो जाना है । यया विधवाविवाह का उपदेश ब्रह्म चर्यका घातक है ? यदि हाँ, नो गृहस्थधर्म का विधान भी मनिधर्म का घातक कहलायगा । पहिली आदि प्रतिमाओं का विधान भी दूसरी शादि प्रतिमाओं का चातक कहलायगा । यदि गाम्धधर्म आदि का उपदेश देने वाले, बञ्चक. नास्तिक, पाखंटी, पापोपटेष्टा, पाप पंथ में फैमाने वाले यादि नहीं है नो विधवाविवाह के प्रचारक मी वञ्चक यादि नहीं हैं। क्योंकि जिम प्रकार पूर्ण संगम के अभाव में अविरनि ने हटाने के लिये गृहस्थधर्म (विरताविरन) का उपदेश है उसी प्रकार पूर्ण ब्रह्मचर्य के अभाव में, व्यभिचार से दूर रखने के लिये विधवा. विवाद का उपदेश है। जब विधवा-विवाह श्रागमविरुद्ध ही नहींहै नय उममें विसवाद फैसा ? और उसका उपटेश भी व्यभिचार की शिक्षा क्यों? विधवाविवाह के उपदेशक ज़बर. दस्ती आदि कभी नहीं करते न घे बहिष्कार प्रादि की धमकियाँ देने हैं। ये सब पाप नो विधवाविवाह-विरोधी पगिडतों के ही मिर पर सवार है। आप (ग)-विधवाविवाह में वेश्या-सेवन की तरह प्रारम्भ गले ही कम हो, परन्तु परिग्रह-ममत्वपरिणामकुमारी विवाद से अनरयान गुणा है। (श्रीलाल) ममाधान-यदि विधवाविवाहमें असंख्यात गुणा ममव है नो विधुरविवाद में भी असंरयातगुणा ममत्व मानना पडेगा। क्योंकि जिस प्रकार विधया पर यह दोषारोपण किया जाना है कि उसे एक पुरुष से सन्तोष नहीं दुश्रा, उसी प्रकार विधुर को मी एक रत्री से मन्तोष नहीं हुश्रा; इसीलिये वह
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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