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________________ * आवश्यक निवेदन * - - जैन ममाज और हिन्द ममाज की घटी का मुरय कारण विधवाविवाह से घृणा करना व उसको व्यभिचार या पाप मममना है। लाखों ही संतान बिन विवाहे कुमारे रह जाते है, क्योंकि उनको न्याय नहीं मिलती। इसलिये वे जय मरते हैं नय अपने घरों में सटा के लिये ताले लगा जाते हैं। उधर विधुर पुरुर अपने पक जीवन में कई २ यार शादियां करते हैं, वृद्ध होने पर भी नहीं चूकते है, जिसका फल यह होता है कि बहुत मी युवान विधवाएँ बिना सनान रह जाती है। कोई जो धनवान होनी है वे गांद ले लेनी है शेष अनेक निःसंतान मरकर अपने घरमें नाला दे जाती हैं। इस तरह कुवारे पुरुषों के कारण व बहुसंन्यक विधवाओं के कारण जैन समाज तथा हिन्दू ममाज बड़े वेग से घट रहा है। जहां २५ वर्ष पहले १०० घर थे वहां अब ४०-५० ही घर पाए जाने हैं। जैपुर में २५ व ३० वर्ष पहले जैनियों के ३००० घर थे, अब मात्र १८०० ही रह गप है। उधर युवान विधवाओं को अनेकों गुप्त पापों में फंसकर घोर व्यभिचार व हिंसा के पाप में सनना पड़ता है। वे ब्रह्मचर्य फ भार को न मह सकने के कारण पतित हो जानी हैं। यह सब वृथा ही कष्ट व हानि उठाई जा रही है, केवल
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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