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________________ ( ४६ ) प्रयोग किया जाय तो धनुष चलाने वाले तीर्थङ्कर चक्रवर्ती श्रादि सभी राजा महाराजा मील कहलायेंगे | इसी प्रकार नौकर के पर्यायवाची शब्दों में शुत्र-जीवी लिखा है । लेकिन सभी नौकर शस्त्रजीवी नहीं होते । शुत्रजीवी तो सिर्फ सिपा हियों ओर सैनिकों को कह सकते है परन्तु सैनिक और नौकर का एक ही अर्थ करना नाममाला की ही विचित्रता है । दूसरे कोषों में न तो पुनर्भू का पर्याय शब्द व्यभिचारिणी लिखा हैं, न धानुष्क का पर्याय शब्द भील लिखा है और न सैनिक का पर्याय शब्द सेवक लिखा है । इस प्रकार की छोटी मोटी भूत * नाममालामें दर्जनों उदाहरण मिल सकते है । जो नाममाला की इन त्रुटियों पर ध्यान न देना चाहते हों वे उपर्युक्त छेट्टक ( पैराग्राफ) के कथनानुसार पुनर्भू शब्द के अर्थ करने में अमरकोशकार और नाममालाकार का मतभेद सम । इसलिये पुनर्विवाहिता को व्यभिचारिणी नहीं कहा जा सकता । इसके बाद क्षेपक ने साहसगति विद्याधर नथा 'धर्म संग्रह श्रावकाचार' के कन्या शब्द पर अज्ञानता पूर्ण विवेवन किया है, जिसका विस्तृत उत्तर थाक्षेप 'श्रं' 'अ' और "क" में दिया जाचुका है। इसी तरह दीक्षान्वय क्रिया के पुनविवाह का विवेचन श्राक्षेप नं० 'ख' में किया गया है। श्राक्षेपक ने वकवाद तो बहुत किया, परन्तु वह इतनी भी बात नहीं समझ पाया कि दीक्षान्त्रय क्रिया के पुनर्विवाह का उल्लेख क्यों किया गया था। दीक्षान्वय क्रियाके पुनर्विवाह से हम विधवाविवाह सिद्ध नहीं करना चाहते, किन्तु यह बतलाना चाहते है कि विवाहिता स्त्री भी, अगर उसका फिर विवाह हो तो (भले ही अपने पति के ही साथ हो) कन्या कहलाती है। अगर कन्या शब्द का अर्थ कुमारी ही किया जायगा तो दीक्षान्चय क्रियामें 1
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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