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________________ ( ४८ ) जाते है नब निवृत्यात्मक भी होते है। उन में कुदेवपूजा तथा अन्य अशम परिणतियों में नित्ति पायी जाती है। इसी से वे मी व्यवहार धर्म कहे गये है। इस विवेचन स पाठक समझ गये होंगे कि विधवाविवाह में कुमारीविवाह के बगयर निवृत्ति का प्रण पाया जाता है। इमलिये दानों एक ही नगह क व्यवहार धर्म है । अाप (ड) यह लिखना महाझूठ है कि विवाह के सामान्य लक्षण में कन्या शब्द का उल्लेख नहीं है । 'कन्या का ही विवाह होता है क्या इस दलील को झूठ बोलकर यो ही उडा देना चाहिये ? समाधान-हमने कन्या शब्द को उडाया नहीं है, बल्कि इस शब्द के ऊपर तो हमने बहुन जोरदार विचार किया है। गजवानिक नथा अन्य प्रों में जो कन्या गब्दका प्रयोग किया गया है, उसके विषय में हम श्रीलालजो के आक्षेपों के उत्तर देते समय लिख चुके है। इसके लिये आक्षेप नम्बर '' का समाधान पढ लेना चाहिये। आक्षेप (ढ)-श्राप त्रिवर्णाचार को प्रमाण मानकर के भी उसी के प्रमाण देते है, लेकिन जिम त्रिवर्णाचार में टट्रो पेशाव जाने की क्रिया पर भी कडी निगरानी रखी गई है, उसी में विधवाविवाह की सिद्धि कैसे हो सकती है? समाधान-त्रिवर्णाचार को हम अप्रमाण मानते है, परन्तु विधवाविवाह के विरोधी तो प्रमाण मानते हैं, इसलिये उन्हें समझाने के लिये उसका उल्लेख किया है। किसी ईसाई को समझाने के लिये बाइबिल का उपयोग करना, मुसलमान को समझाने के लिये कुगन का उपयोग करना, हिन्दू का समझाने के लिये वेद का उपयोग करना जिस प्रकार उचित है, उसी मार स्थितिपालकों को समझाने के लिये त्रिवर्णाचार का
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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