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________________ ( २ ) दुवारा विवाह नहीं होता । यशस्ति में लिखा है कि एकबार जो क्या स्त्री बनाई जानी है वह विवाह द्वारा फिर दुबारा स्त्री नहीं बनाई जानी' । श्रादिपुराण में कीर्ति कहते हैं 'कि मैं उन विववा सुलोचना का क्या करूँगा' । नीतिवाक्यामुन में श्रेष्ट ग्रहों में भी कन्या का पकचार विवाह माना जाता है । समाधान - जैनगज़ट में श्लोक नहीं छपने इस की श्रांट लेकर पडित लोग खूब मनमानी गर्ने हाँक लिया करते हैं । अगर श्लोक देने लगे तो सारी पोल खुल जाय । र, प्रबोध मार में तो किसी भी जगह के २४ नम्बर के श्लोक में हमें fararfarane का निषेध नहीं मिला । यशस्तिलक के लोक के अर्थ करने में श्रापक ने जान बूझकर धोखा दिया है । ज़रा वहाँ का प्रकरण श्री व श्लोक देखिये । किस तरह की मूर्ति में देवकी स्थापना करना चाहिये, इसके उत्तर में सोमदेव लिखते हैं कि विष्णु श्रादिकी मूर्ति में श्रहन्न की स्थापना न करना चाहिये। जैसे—जब तक कोई स्त्री किसी की पत्नी है तब तक उस में ( पम्परिग्रहे ) स्वस्त्री का महत्व नहीं किया जा सकता । कन्याजन में स्वन्त्री का मल्प करना चाहिये । गुत्रन्तृनिकला. न्याजन इवोचितः । नवागन्तर संक्रान्ते यथा परपरिग्रहे ॥ मतलब यह कि मूर्ति का श्राकार दूसरा हो और न्यापना किसी अन्य की की जाय तो वह ठीक नहीं । हनुमान की मूर्ति में गणेश की व्यापता और गणेश की मूर्ति में जिनेन्द्र को स्थापना अनुचित है । परन्तु मूर्ति का आकार बदलकर अगर स्थापना के अनुरूप बना दिया जाय तय वह स्थापना के प्रतिकुल नहीं रहतीं । श्रन्य मलवियों में तो पत्थरों के ढेर और पहाड़ों तक की देवता की पूर्ति मान लेने हैं । इसलिये क्या
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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