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________________ (२२) का हरण किया । यह वात पहिले ही ( पन्नपुगण में) कही (कुण्डलमण्डित ने पिंगल की स्त्री का ही हरण किया था, किसी कुमारी का नहीं। यह बात पाठक पनपुगण में देख सकते है । यहां भी वह श्लोक दिया जाता है --- भरतस्थे विदग्धारये पुरे कुण्डलमण्डितः । अधार्मिकोऽहरकांनां पिंगलस्यमनः प्रियां ॥ ॥३०॥६६॥ इस श्लोक में जिस का उल्लेख कान्ता शब्द से किया गया है, उसी का १३३ वे श्लोक में कन्या शब्द सं किया गया है। इन घटनाओं की अन्य बातों से हमें कोई मतलय नहीं । हमें तो आक्षेपक के हठ के कारण इन का उल्लेख करना पड़ा है। इस से हमें सिर्फ यही सिद्ध करना है कि कन्या शब्द का अर्थ 'ग्रहण-वरण करने योग्य स्त्री' है। इस लिए "कन्यावरणं विवाहा" ऐसा कह कर जो विधवाविवाह का निषेध करना चाहते हैं, वे भूलते हैं। __ आक्षेप-(अ) कन्या शब्द का अर्थ नारी भी है, इसलिये देवागनाओं के लिये 'देव-कन्या शब्द का प्रयोग किया गया है । यह नहीं हो सकता कि जो स्त्री दूसग पति करे, वही कन्या कहलावे । विधवा होकर दूसरा पति ग्रहण करने वाली भी कन्या कहलाती हो सो सारे सम्मान में कहीं नहीं देखा जाता । जिन योरोप श्रादि देशो में या जिन जातियों में विधवा-विवाह चालू है, उन में भी विवाह के पूर्व लडकियों को कन्या माना जाता है और विवाह के बाद बधू आदि। समाधान-कुमारी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों (सधवा,
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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