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________________ ( २२२) बाद पक कुटुम्ब छोडकर दुख कुटुम्ब में जाना पड़ता है । इसलिये भी श्रीमन्त धगनों की स्त्रियाँ पुनर्विवाह नहीं करती थीं, क्योंकि ऐसी अवस्थामै उन्हें गरीव घग्में जाकर रहना पडता था । चूँकि श्रीमान लोगों को तो कुमारियाँ ही मिल जाती थीं इसलिये वे विधवाओं में विवाह नहीं करते थे। गरीव घगनों में होने वाले वैवाहिक सम्बन्धों का महत्व न होने से शालों में उनका उल्लेख नहीं है। उ-प्रायः कुमारियाँ हो म्वयम्बर करती थीं और स्व. यम्बर बडे २ विग्रहोंक तथा महत्वपूर्ण घटनाओं के न्यान थे इसलिए शास्त्रों में स्वयम्बर का जिकर शाता है । विधवाओं का स्वयम्बर न होने से विधवाविवाह का जिकर नहीं आता। ऊ-हिन्दू पुगणों में द्रौपदी के पात्र पनि माने गये हैं। दिगम्बर जैन लेखकान द्रौपदीक प्रकरण में इस बातका खण्डन किया है। हिन्द शास्त्रों के अनुसार मन्दोदरीका भी पुनर्विवाह हुआ था, परन्तु मन्दोदरी के प्रकरण में उसके पुनर्विवाह का खण्डन नहीं किया गया. इससे मालूम होता है कि दिगम्बर जैन लेखक बहुपतित्व (एक साथ बहुत पनि रखना) की प्रथा के विरोधी थे, परन्तु विधवाविवाह के विरोधी नहीं थे। ऋ-हमारे पुराण जिस युग के बने हैं उस युग में भारत में सतीप्रथा ज़ोर पकड रही थी, विधवाविवाहकी प्रथा लुप्त होरही थी। ऐसी अवस्था में दिगम्बर जैन लेखकाने जमाने का रुख देखकर विधवाविवाह वाली घटनाओंको अलग कर दिया, परन्तु कोई आदमी विधवाविनाह को जैनधर्म के विरुद्ध न समझले, इसलिये उनने विधवाविवाहका विरोध नहीं किया। ल-हिन्द पुराणों से और स्मृतियों से चैदिक धर्माव. लम्बियों में विधवाविवाह का रिवाज सिद्ध है। गौतम गणधर ने हिन्दू पुराणों की बहुतसी बातोंका खण्डन किया, परन्तु
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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