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________________ ( १६४ ) समाधान - शान्तिसागर का मुनि बनना अगर विरुन रूप है तो दलों का मुनि न बनने देने वाले शान्तिसागर को मुनि क्यों मानते है ? अगर मुनि मानते हे तो किसी का मुनि बनने का अधिकार नही छिन सकता । होना और सना में कार्य कारणभाव है। जहाँ होना है वहाँ सकना श्रवश्य हैं। अगर कोई स्वर्ग जाना है तो इससे यह बात आप ही सिद्ध हो जाती है कि वह स्वर्ग जा सकता है । जब शास्त्रां में ऐस मुनियों के बनने का उस न हैं, उन्हें मोक्ष तक प्राप्त हुआ है तब उन्हें मुनि बनन का अधिकार नहीं हैं ऐसा कहना मूर्खता है । सच्चे शास्त्रों में कहीं किसीका कोई अधिकार नहीं छीना गया । अच्छे काम करने का अधिकार कभी नहीं छीना जा सकता । अथवा नरपिशाच गक्षस ही ऐसे अधिकारों को छीनने की गुस्ताखी कर सकते है । कब्बीसवाँ प्रश्न | विधवाविवाह के विराधियों का यह कहना है कि उससे पैदा हुई सन्तान मोक्षाविकारिणी नहीं होती । हमाग कथन यह है कि विधवाविवाह से पैदा हुई सन्तान व्यभिचारजात नहीं है और मोक्षाधिकारी तो व्यभिचारजान भी होने हे । श्राराधना कथा कोष में व्यभिचारजात सुद्दष्टि का चरित्र इसका जबर्दस्त प्रमाण है । आक्षेप ( क ) - सुदृष्टि स्वय अपने वीर्य से पैदा हुये थे । ( श्रीमाल ) विवाहित पुरुष से भिन्नवीर्य द्वारा जां लम्ताम हो वह व्यभिचारजात सन्तति हैं । ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य इन तीन वर्णों की कोई स्त्री यदि परपुरुषगामिनी हां जाय तो परपुरुषोत्पन्न सन्तान मोक्ष की अधिकारिणी नहीं
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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